ये किस तरह याद आ रहे हो
हमें इस कदर क्यों तड़पा रहे हो
क्या कसूर है मेरा
जो मेरे ख्वाबों में आके
मेरी नींद उड़ा रहे हो।
ये किस तरह ....
ख्वाबों में न सही लेकिन
एक बार सामने तो आ जाओ ज़रा
सामने आके मुस्कुरा दो ज़रा
ये किस तरह ...
क्यों दूर रहकर मुझसे
मुझे तड़पा रहे हो
आखिर इस तरह क्यों
मुझे अपना बना रहे हो
ये किस तरह याद आ रहे हो
हमें इस कदर क्यों तड़पा रहे हो
हमें इस कदर क्यों तड़पा रहे हो
क्या कसूर है मेरा
जो मेरे ख्वाबों में आके
मेरी नींद उड़ा रहे हो।
ये किस तरह ....
ख्वाबों में न सही लेकिन
एक बार सामने तो आ जाओ ज़रा
सामने आके मुस्कुरा दो ज़रा
ये किस तरह ...
क्यों दूर रहकर मुझसे
मुझे तड़पा रहे हो
आखिर इस तरह क्यों
मुझे अपना बना रहे हो
ये किस तरह याद आ रहे हो
हमें इस कदर क्यों तड़पा रहे हो
बहुत खूब...|
ReplyDeleteवाह ...
ReplyDeleteबहुत बढ़िया
ReplyDelete✿♥❀♥❁•*¨✿❀❁•*¨✫♥
♥सादर वंदे मातरम् !♥
♥✫¨*•❁❀✿¨*•❁♥❀♥✿
क्यों दूर रहकर मुझसे
मुझे तड़पा रहे हो
आखिर इस तरह क्यों
मुझे अपना बना रहे हो
ये किस तरह याद आ रहे हो
हमें इस कदर क्यों तड़पा रहे हो
वाह ! वाऽह !
क्या बात है !
आदरणीया प्रतिभा वर्मा जी
आपकी काव्य-प्रतिभा से साक्षात करके प्रसन्नता हुई ...
सुंदर मनोभाव !
अच्छी रचना !!
…आपकी लेखनी से सुंदर रचनाओं का सृजन ऐसे ही होता रहे, यही कामना है …
हार्दिक मंगलकामनाएं …
लोहड़ी एवं मकर संक्रांति के शुभ अवसर पर !
राजेन्द्र स्वर्णकार
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दूर से ही पकता है प्रेम .दूरी जब नजदीकी में बदलने लगे ,साथ साथ कोई चलने लगे और आसपास कुछ न हो ,खाबों ख्यालों में ,मानसी सृष्टि सोते जागने होने लगे तब कविता फूटती है वाल्व बनके .
ReplyDeleteपूर्ण स्वीकरण समर्पण है प्रेम .इब्तिदा- ए -इश्क (इश्क की शुरुआत )है ,रोता है क्या ,आगे आगे
ReplyDeleteदेखिये होता है क्या .ये इश्क नहीं आसाँ ,एक आग का दरिया है और डूबके जाना है .
पूर्ण स्वीकरण समर्पण है प्रेम .इब्तिदा- ए -इश्क (इश्क की शुरुआत )है ,रोता है क्या ,आगे आगे
ReplyDeleteदेखिये होता है क्या .ये इश्क नहीं आसाँ ,एक आग का दरिया है और डूबके जाना है .
pratibha ji apki rachana bahut hi achchhi lagi .....sprem badhai
ReplyDeletesundar bhavpoorn rachna..
ReplyDeleteमिलन से पहले विछोह की पीर ,कैसी है प्रेम की रीत .बढ़िया प्रस्तुति मनोभावों की .अन्दर की बे -कलि की .
ReplyDeleteये किस तरह ...
ReplyDeleteक्यों दूर रहकर मुझसे
मुझे तड़पा रहे हो
आखिर इस तरह क्यों
मुझे अपना बना रहे हो
शुभ प्रभात बहुत खुबसूरत लिखती हैं बधाई कह दूँ
बहुत अच्छी प्रस्तुति....बहुत बहुत बधाई...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति ..मेरे ब्लाग में आपकी उपस्थति के इए आभार ..हार्दिक स्वागत एवं शुभ कामनाएं !!!
ReplyDeleteये किस तरह ...
ReplyDeleteक्यों दूर रहकर मुझसे
मुझे तड़पा रहे हो
आखिर इस तरह क्यों
मुझे अपना बना रहे हो
----अर्थात ...
दूरिया नज़दीकियाँ बन गयीं
अजाब इत्तिफाक है |...अजी क्या बात है...
जो भी प्यार से मिला हम उसी के हो लिए ...अच्छी रचना है .शुक्रिया आपकी ताज़ा टिपण्णी का .तुम मेरे पास होते हो ,जब कोई दूसरा नहीं होता
ReplyDeleteजो भी प्यार से मिला हम उसी के हो लिए ...अच्छी रचना है .शुक्रिया आपकी ताज़ा टिपण्णी का .तुम मेरे पास होते हो ,जब कोई दूसरा नहीं होता
ReplyDeleteखूबसूरती से की गयी शिकायत .... :):) सुंदर प्रस्तुति
ReplyDelete६४वें गणतंत्र दिवस पर शुभकामनाएं...
ReplyDeletekhoobsoorat aur roomani..
ReplyDeleteFirst timer on your blog, looks like I am reading about me: "Passionate about poetry, nature and human psychology. A Wanderer and believes creativity is the best quality a person can have."
ReplyDeleteNice thinking, Keep expressing! All the best.
बहुत ही सुंदर ! http://blog.irworld.in/
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