Monday, September 05, 2011

इस शिक्षक दिवस पर...

कभी उन्हें हम पर गुस्सा आता था
कभी हमें उन पर गुस्सा आता था,
जब एक्स्ट्रा क्लासेस में वो हमें बार -बार बुलाते थे ,
और हम क्लासरूम से बंक करके भाग जाते थे ।
फिर अगले दिन वो हम पर चिल्लाते थे ,
और हम बेशरम सर झुकाकर माफ़ी भी मांगते थे।
कभी उनका कहना सुनते थे तो कभी ,
अपनी मनमानी करते थे ।
कभी क्लास के टाइम पर कंटीन में पाए जाते थे ,
तो कभी सिरदर्द का बहाना कर हॉस्टल में सोते पाए जाते थे।
इतनी गलतियों के बावजूद उन्होंने हमें सिखाया ,
और आज हमें इस लायक बनाया ।
हम आज शुक्रिया कहतें हैं उन सभी शिक्षकों को ,
जिन्होंने हमें इस मुकाम तक पहुँचाया।

Saturday, August 06, 2011

बोलो है कोई ऐसा रिश्ता.........

दोस्ती एक ऐसा रिश्ता है एक ऐसा नाता है ,
जिसने एक दिल को दुसरे दिल से बंधा है|
दोस्ती का ये रिश्ता हर रिश्ते से ऊपर है,
ये तो एक ऐसा पवित्र बंधन है,
जो हर रिश्ते को पीछे छोड़ आया है,
आज भी हमें याद है वो बचपन के दिन,
जब हम साथ खेलते थे और लड़ते भी थे,
लेकिन आज भी हम उसी पवित्रता से एक दूजे के साथ हैं,
लाख झगड़े किये हमने लाख मनमुटाव हुए,
पर ये क्या कम है कि आज भी हम साथ हैं|
और हमारे दिल आज भी एक दूजे के लिए साफ़ हैं
बोलो है कोई ऐसा रिश्ता जो दोस्ती से पाक है ||

Saturday, January 22, 2011

कहानी उन परिंदों की...

हमें न जाने कहाँ से परिंदों से प्यार हो गया
सुबह बाज़ार जाकर हम कुछ परिंदे ले आये
कैद कर के रखा था हमने उन्हें कि
कहीं हमें छोड़ कर शायद वो उड़ न जाएँ
हर सुबह मैं उन्हें दाना खिलाती
उनके साथ मैं घंटों बिताती
वो फड़्फड़ाते थे उस बंद पिंजड़े में
शायद उड़ना चाहते थे खुले असमान में
पर मैं कभी उनका दर्द न समझ पायी
एक रोज़ अहसास हुआ कि क्यों कैद कर रखा है
हमने इन्हें इस पिंजरे में
आखिर क्या गुनाह है इनका...
शाम का वक्त था जब बैठी थी मैं उनके साथ
फिर मन में ख्याल आया और मैंने निश्चय किया
सुबह उठकर उन्हें आज़ाद कर दूंगी
उड़ा दूंगी इस खुले आसमान में
सुबह उठकर कर दिया उन्हें आज़ाद हमने
दर्द तो बहुत हुआ ....
क्योंकि बहुत प्यारे थे हमें वो
उन्हें आजाद करने के बाद बहुत रोयी मैं
शाम ढलते ही मुझे उनका ख्याल सताने लगा
इसी ख्याल के साथ जा पहुंची मैं छत पर
वहां जाकर देखा तो दंग रह गई
वहां का नज़ारा देखकर
सारे परिंदे वापस आ चुके थे
पर ये देखकर मैं कुछ समझ न पाई
कि उन्हें मुझसे लगाव हुआ था या फिर उस बसेरे से॥