Saturday, January 26, 2013

कैसे शुभकामनाएं दूँ ...


कैसे शुभकामनाएं दूँ तुमको 
इस गड्तंत्र दिवस की 
बोलो कोई है वज़ह 

हमारा भारत आज भी तो वहीं है 
जहाँ कल था 
जाके देखो उन गाँव में 
जहाँ आज भी बिजली 
की ज़गह दिया जलता है 

उन मिट्टी की दीवारों 
से आज भी बारिश 
में पानी अन्दर आता है 

तब अपने तन को 
ढकने के बजाय 
वो आज भी अपने 
जानवरों को ढकते है 

उस कोमल मन को 
आज भी ये जानवर 
बच्चों की तरह ही प्यारे हैं 

आज भी राशन की 
लम्बी लाइन लगाना 
और घंटों बाद ये पता चलना 
की आज भी बंद है 

किस हक़ की बात करें हम आज  
जो किसी को मिला ही नहीं 

बस कुछ एक नेताओं 
की झोली में समिटकर 
ख़त्म हो जाता है।।

Friday, January 18, 2013

"गुजारिश "

आज तुमसे कुछ कहना और 
कुछ सुनना चाहती हूँ,
फिर से तुम्हें पलकों के 
साए में रखना चाहती हूँ।

सदियों से इंतज़ार था तुम्हारा,
अब आये हो तो पहलु में 
ठहरो भी ज़रा।
कुछ कहो और 
कुछ सुनो तो ज़रा,

हवाओं का अंदाज़ भी 
कुछ बदला - बदला सा है,
कुछ तुम्हारी ही तरह 
खफा - खफा सा है।

गर शिकायत है हमसे 
तो कहो तो सही,
बिना कहे तूफां लाना 
सही भी तो नहीं है।।



Friday, January 11, 2013

कैसी ये सौगात ...

रिश्तों की ये अजब सी सौगात है,
आज खुद हमें ये एहसास है।

क्या ज़माना आ गया है ,
कि  कोई रिश्ता न अब खास है।

माँ - बाप का नाम जल्द कहीं आता नहीं,
हम कहतें हैं आज हमारा उनसे कोई नाता नहीं।

कैसा अजब है ये दुनिया का दस्तूर,
जो हमें इस दुनिया में लाया 
वही है अब हमसे दूर।

तो चलो आज ये 
खुद से वादा कर लें,
अपने माँ - बाप का सहारा बन लें।

जिसने हमें जीना सिखाया,
उनकी ज़िन्दगी को खुशियों 
से भर दें।।

Wednesday, January 02, 2013

चिंतनीय विषय ...

आज के  हिंदुस्तान टाइम्स के सर्वे की एक  रिपोर्ट के अनुसार अठत्तर प्रतिशत महिलाएं दिल्ली में  बीते वर्ष सुरछित नहीं थीं ...अब चिंता का विषय ये है कि आने वाला साल इस राजधानी को क्या एक सुरक्षित भाविष्य दे पायेगा ? क्या कोई औरत, बेटी, बहन अपने आपको सुरक्षित महसूस कर पायेगी यहाँ पर ...कहने को लोग कहतें हैं की एक औरत ही औरत का दर्द समझती है ...पर यहाँ तो हमारी सरकार भी एक महिला ही चला रही हैं।।

अब सबसे ज्यादा चिंतित तो वो माता - पिता हैं जिनकी बच्चियां  बड़ी हो रही हैं ...आजकल तो शायद उनके गले के नीचे निवाला भी नहीं उतरता होगा ...हर रात बस यही चिंता सताती होगी कि क्या उनकी औलाद सुरक्षित है ?

हर रात माँ मेरे पास आती है 
मेरे सिरहाने आके
मेरे सर पर अपना 
हाँथ फिराती है ...

और फिर अनकहे मन से 
दबे पाँव वापस 
चली जाती है ...

उसे लगता है अब 
सो चुकी है उसकी लाड़ली 
यह सोचकर वह उस रात 
तो शुक्र मानती है ...

वहाँ बाबा भी बंद आँख 
करवटें बदलते रहतें हैं 
बस कल की  चिंता में।।



Tuesday, January 01, 2013

इस नव वर्ष पर ...

नया साल आया है
कुछ सपने सुहाने लिए
कुछ नगमें सुहाने लिए ...

इसलिए नव वर्ष का
स्वागत करो दिल की
गहराइयों से ....

माना कि एक और
वर्ष बीत गया
बहुत सारी मीठी - कड़वी
यादों के साथ ...

लेकिन जो आया है
उसे अपना बनाओ
नई उम्मीदों के साथ ...

कुछ सपने सजाओ
कुछ नगमें गुनगुनाओ
ताकि पूरा कर सको उन्हें तुम
सच्ची लगन के साथ ।।