आज तुमसे कुछ कहना और
कुछ सुनना चाहती हूँ,
फिर से तुम्हें पलकों के
साए में रखना चाहती हूँ।
सदियों से इंतज़ार था तुम्हारा,
अब आये हो तो पहलु में
ठहरो भी ज़रा।
कुछ कहो और
कुछ सुनो तो ज़रा,
हवाओं का अंदाज़ भी
कुछ बदला - बदला सा है,
कुछ तुम्हारी ही तरह
खफा - खफा सा है।
गर शिकायत है हमसे
तो कहो तो सही,
बिना कहे तूफां लाना
सही भी तो नहीं है।।
बेहतरीन प्रस्तुति,,,,
ReplyDeleteक्यों छेड़ते हो जिक्र न मिलने का रात का
पूछेगें हम सबब तो बताया न जाएगा,,,,
recent post : बस्तर-बाला,,,
बिना इज़हार के कहीं प्यार होता है ???
ReplyDeleteअच्छी रचना..
अनु
Sunder Rachna
ReplyDeleteVery beautifully expressed.
ReplyDeleteगुलाबी मनोभावों का सुंदर चित्रण
ReplyDeleteप्यार का आलम ही कुछ और होता है,बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति।
ReplyDeleteलाजवाब लिखती हैं आप।
ReplyDeleteसादर
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खटरागी हूँ ....
nice composition..:)
ReplyDeleteआज तुमसे कुछ कहना और
ReplyDeleteकुछ सुनना चाहती हूँ,
फिर से तुम्हें पलकों के
साए में रखना चाहती हूँ।
बहुत ही खुबसूरत कविता |प्रतिभा जी आपका अंदाज निराला है |
गर शिकायत है हमसे
ReplyDeleteतो कहो तो सही,
बिना कहे तूफां लाना
सही भी तो नहीं है।।
..बिलकुल सही कहा ..बिना वजह कुछ नहीं ...
बहुत खूब।।
गर शिकायत है हमसे
ReplyDeleteतो कहो तो सही,
बिना कहे तूफां लाना
सही भी तो नहीं है।।
..बिलकुल सही कहा ..बिना वजह कुछ नहीं ...
बहुत खूब।।
Bahut sahi...
ReplyDeleteJo humaare zindagi ke bahut karib ho unko yah ehsaas hona chahiye ki hum,unhi se hai...