Monday, June 10, 2013

"बनना चाहती हूँ एक नदी"



By: Pratibha 


बनना चाहती हूँ एक नदी
जो हमेंशा बहती ही रहती है
बस अपनी ही धुन में ...
पर सबको देती है
वरदान अपना
मीठे जल से करती निर्मल सबको
बस बहती रहती है अपनी ही धुन में
बिना रुके बिना थके
बिना किसी आलस
कितनी सुन्दर कितनी निर्मल
दिखती है ये
अन्दर से भी है  बड़ी ही निर्मल और पावन
हजारों दुखों और सुखों को
बड़ी ही सहजता से संजोया है
अपने अन्दर
साक्षी है तमाम कसमों
और रस्मों  की
पर कभी न कहती किसी से
बस अपने अन्दर दबाये है
हजारों एहसासों को
फिर भी न कोई गुस्सा न कोई रोस
दिखाती है
बस बहती रहती है  अपनी ही धुन में!!