Monday, December 30, 2013

अब शब्द नहीं मिलते ....

क्या लिंखुँ  अब खुद से
क्या कहूं  तुमसे
कि अब शब्द नहीं मिलते!!

कुछ कहने की  चाहत तो है
पर शायद तुम सुन न पाओगे
अब कहने सुनने  को शब्द नहीं बचते !!

वक्त का पहरा भी
कुछ इस कदर है हमपे
कि कुछ लिखने को पल नहीं मिलते!!

लिखने की  कोशिश की
तो लिख भी न पाई
कि इस  दिल में ख्वाब नहीं रहते !!





Tuesday, October 22, 2013

कुछ पल बेफिक्री के …

कुछ पल तो बेफिक्री के
बिताओ कभी यारों के साथ,

बिना किसी चिंता बिना किसी डर  के 
बेसुरे राग में कुछ तो गुनगुनाओं यारों के साथ 

कभी रातों में सड़क पर निकल के 
चाय की चुस्कियां लगाओ यारों के साथ 

कभी बिना बुलाये मेहमान की तरह 
दोस्तों के घर पहुँच जाओ बिना बताये 

यही तो वो दिन हैं वो उम्र है 
जहाँ हम हैं यारों के साथ 

फिर क्यों  न कुछ पल बेफिक्री के 
बिताओं यारों के साथ !!

Saturday, September 07, 2013

फुरसत के चार पल ...

कभी फुरसत  में मिलें पल तो हमें बताना
हमारे पास आकर दो लफ्ज़ कह जाना

इस जहाँ में कहाँ है वक्त किसी के पास
मगर तुम तो कुछ पल मेरे साथ बिताना

हमसफ़र हो तो साथ ही चलना
गैरों की तरह यूँ तन्हा न छोड़ना

कहतें हैं की अँधेरे में साया भी साथ छोड़ देता है
पर तुम ऐसे अंधेरों से मुझे बचाना

जब कभी निराशाओं से घिरुं मैं
मेरा हाँथ थाम कर बाहर ले आना !!






Thursday, September 05, 2013

मेरे शिक्षक...

मेरे शिक्षक और उनकी मेहनत
और उनका सहयोग,
इन्ही सब ने तो हमें
यहाँ तक पहुँचाया है,
वो बंदिशें वो डाट
हमारे सर पर
उनका वो प्यार भरा हाँथ,
हममें कुछ करने का जज्बा
और ऊंचाईयों को छूने का
जूनून भरना,
खुद मशाल की तरह ज़लकर
हमें रोशनी  देना,
कोटि - कोटि आभार
उन शिछकों का
जिन्होंने हमें यहाँ
तक पहुँचाया, 
हमारे हर सपने को
साकार कराया!!

Saturday, August 24, 2013

कहाँ गई वो मर्यादा…

कहाँ गई वो मर्यादा
कहाँ गया वो पुरुषार्थ

जहाँ बंधते थे रिश्तों  के धागे
और उनको निभाने की कसमें

वो रेशम की डोरी
वो हंसी वो ठिठोली

जहाँ थी एक मर्यादा
जहाँ था एक विश्वास

न कुचलता था कोई किसी की मर्यादा
न ही करता था खुद को शर्मशार

पर  आज शायद इंशानियत खो सी गई है कहीं
क्यूंकि आज फिर किसी ने किया है  इंसानियत को शर्मशार !!



Monday, August 19, 2013

ओ धुंधलाती हुई शाम…

ओ धुंधलाती हुई शाम
जहाँ था तुम्हारा इंतज़ार
और तुम्हारी यादें

आसपास थी हलचल
लेकिन मेरे अन्दर
कहीं था सन्नाटा

एक सूनापन
जो खुद ही से कुछ
कह रहा था

शायद तुम्हारी याद में
बेपनाह मुझको
झिझोड़  रहा था

कह रहा था तुम
न आओगे लौट कर
वापस

ये कहकर ओ
मेरे सपने को
तोड़ रहा था

लड़ रही थी इन सबसे
सँजो  कर रखना चाहती थी
इस सपने को

जिसमें तुम हो
और तुम्हारी यादें
देखतें हैं कौन जीतता है !!!


Wednesday, August 07, 2013

बिना कहे कोई बात नहीं बनती …

बिना कहे कोई बात नहीं बनती
बिना बात कोई बात नहीं होती

कहीं तो रहे होंगे फासले
वरना ये दूरियाँ नहीं बढ़ती

तुम कहते हो तो छोड़ देतें हैं तुम्हारा दामन
लेकिन तुम्हारे बिना ये सांस नहीं चलती

बड़ी मुस्किल है तुम्हे भुला पाना
उससे भी  मुस्किल है तुम्हारे बिना जी पाना

पर क्या करें वादा भी हम्हीं ने किया है
तो अब निभाना भी पड़ेगा!!







Sunday, August 04, 2013

बचपन की यादें …

हमारी वो बचपन की दोस्ती
आज भी खास
हमारे इस दिल के और भी पास है

वो बचपन के खेल
वो बचपन की यादें
आज भी याद हैं

हमारा वो लड़ना
वो झगड़ना
और फिर सब पल में भूल जाना

जाके सड़क पर खेलना
भरी धूप  में मस्ती करना
और फिर झगड़ते हुए घर आना

कितनी प्यारी हैं ये यादें
कितने प्यारे हैं ये पल
और उससे भी प्यार है ये रिश्ता 

यही दोस्ती तेरी
जो आज भी मेरे पास है
और इसीलिए तू आज भी सबसे खास है !!

Monday, July 22, 2013

अब क्या कहें तुमसे …

अब क्या कहें तुमसे
अब क्या सुने तुमसे

न छोड़ा तुमने
कुछ कहने और सुनने को

शिकवा अगर तुमसे करें
तो ये सही न होगा

क्योंकि गलती तो
हमारी भी रही होगी कहीं

आखिर क्यूँ दिया ये हक़
हमने किसी को

जो वो हमारी ज़िन्दगी
को जार - जार कर गया

दिखाकर एक सुहाना सपना
हमें बेपनाह  कर गया !!

Saturday, July 20, 2013

अगर तुम न होते …

अगर तुम न होते
तो न होती उम्मीदें
न होते कोई ज़ज्बात

अगर तुम न होते
तो न होती चाहतें
न होते कोई रिश्ते

अगर तुम न होते
तो न होती आशाएं
न ही होते ये सपने

अगर तुम न होते
तो न धड़कता ये दिल
न ही होता ये प्यार

अगर तुम न होते
तो न होते ये ज़ख्म
न ही होता ये दर्द

अगर तुम न होते
तो न होता ये रूश्वाई का मंज़र
न होते इस दिल के टुकड़े हज़ार !!




Thursday, July 18, 2013

ये दुनिया ...


ये दुनिया मतलब की दुनिया
न तेरी न मेरी ये  दुनिया

जहाँ न कोई तेरा न कोई मेरा
बस खुद की ख्वाहिशों में डूबी
ये दुनिया

बसा है आशियाँ घरौंदों का जहाँ
मतलबफरोशी इन्सानों
की दुनिया

कहें किसको  अपना नहीं है खबर
आँशुओं  में डूबे
आरमानों  की दुनिया

फिर रहा आदमी कुछ पाने की आश में
सपनों  में खोये
बासिंदों की दुनिया

ये दुनिया मतलब की दुनिया
न तेरी न मेरी ये  दुनिया!!!




Tuesday, July 16, 2013

उफ़ ये बारिश और तुम ...

उफ़ ये बारिश और तुम
बिना बताये आ जाते हो
कुछ तो समानता है तुम दोनों में

जहाँ बरस गए धीरे - धीरे कर
उसकी दुनिया
ही उजाड़ डालते हो
फिर तुम्हे फर्क नहीं पड़ता
किसी ने तुम्हे कितनी सिद्दत से चाहा

तुम्हारी तो बस आदत है
लोगों को  परेशां करना
उनकी भावनाओं से खेलकर
छोड़ देना

माना  कि  लोगों की
तुम चाहत हो
ज़रुरत हो
लेकिन इसका मतलब ये तो नहीं

कि  तुम उनकी
कदर न करो
लाख बर्बादी का मंज़र लाओ
लाख ज़लज़ला लाओ

पर ये इंसान भी अजीब चीज़
बनाई  है खुदा  ने
या इसको  ज़रुरत ही कुछ
ऐसी दी है ...

कि  चाह कर भी
तुम्हे भुला नहीं सकता
तुम्हारे बिना जी नहीं सकता !!


Tuesday, July 02, 2013

क्या लिखूं इस फादर्स डे पर...

समझ में नहीं आता क्या लिखूं 
इस फादर्स डे पर 
और किसके लिए लिखूं 

उस इंसान के लिए 
जो हमें कब का छोड़ गया 
बिना किसी गलती के 
बिना किसी गुनाह के 

क्या तुम थे इतने बेपरवाह 
इतने कमजोर 
जो मेरे साथ न रह सके 
इलज़ाम दूँ भी तो किसको 
तुमको या उस खुदा  को 

पर फिर लगता है 
तुमको भी तो उतनी ही 
तकलीफ हुई होगी 
जितनी हमें हुई 

तुम्हारे लिए भी 
आसन न रहा होगा
हमें छोड़ कर जाना 
तुमने भी की होगी 
उस खुदा  से लड़ाई

तुमने भी चाहा  होगा 
हमारे साथ 
ताउम्र रहना 
हमारे हर सुख -दुःख का 
भागीदार  बनना   

किससे  करूं  सिकवा 
किससे  क्या शिकायत 
आज तुम न सही 
तुम्हारी यादें तो हैं 

तुम्हारे साथ बिताये हुए 
हर लम्हें का एहसाह  तो है
हमारें दिलों में    
तुम्हारा  नाम  तो है 

करती हूँ ये वादा 
तुमसे मैं आज 
कभी न करुँगी 
तुमको उदास!!

Monday, June 10, 2013

"बनना चाहती हूँ एक नदी"



By: Pratibha 


बनना चाहती हूँ एक नदी
जो हमेंशा बहती ही रहती है
बस अपनी ही धुन में ...
पर सबको देती है
वरदान अपना
मीठे जल से करती निर्मल सबको
बस बहती रहती है अपनी ही धुन में
बिना रुके बिना थके
बिना किसी आलस
कितनी सुन्दर कितनी निर्मल
दिखती है ये
अन्दर से भी है  बड़ी ही निर्मल और पावन
हजारों दुखों और सुखों को
बड़ी ही सहजता से संजोया है
अपने अन्दर
साक्षी है तमाम कसमों
और रस्मों  की
पर कभी न कहती किसी से
बस अपने अन्दर दबाये है
हजारों एहसासों को
फिर भी न कोई गुस्सा न कोई रोस
दिखाती है
बस बहती रहती है  अपनी ही धुन में!!

Thursday, April 18, 2013

बेटियाँ ...

एक प्यारे से सपने की तरह 
होती हैं बेटियाँ 

किसी के घर की रौनक 
तो किसी के घर की किलकारी होती हैं बेटियाँ 

किसी के घर की लाज 
तो किसी के घर का गुरूर होती हैं बेटियाँ 

किसी भी अनमोल खजाने से बढ़ कर 
बहुमूल्य होती हैं बेटियाँ 

किसी के दिल का सुकून 
तो किसी के सर का ताज  होती हैं बेटियाँ 

Saturday, April 13, 2013

"आँसुओं के मोती"

आँसुओं के मोती हम पिरो न सके,
तुम्हारी याद में हम रो न सके।

जख्म कुछ इतना गहरा दिया तुमने,
कि  कोई दवा  उसे भर न सकी।

लोग कहतें हैं अपनों का प्यार भरता है,
ऐसे जख्मों को।

पर गर अपने ही जख्म दें ,
तो दवा कौन करे??

Wednesday, March 20, 2013

"चाँद से करती हूँ बातें "




कभी- कभी चाँद से करती हूँ बातें 
कुछ अपनी कहती हूँ 
कुछ उसकी सुनती हूँ 
हम घंटों बैठतें हैं साथ 
खामोश रातों में 
तन्हाई में 
कुछ शिकायतें 
और कुछ शिकवों के साथ 
हकीकत से परे 
बस अपनी ही दुनिया में 
जहाँ होते हैं मेरे 
बहुत सारे सवाल 
और मेरे खुद के 
कुछ एक जवाब!!




Wednesday, February 27, 2013

ये रिश्ते ...

ये रिश्ते बड़े अजीब होते हैं
संजो कर रखो तो सीप
में मोती की तरह दिखतें हैं,
ज़रा सी चूक होने पर
कांच की तरह बिखरतें हैं ,
न दिल को भायें तो
जिगर में काँटों की तरह चुभते हैं,
फिर भी हमें बड़े ही
अजीज़ होतें हैं।।

Friday, February 22, 2013

बसन्त आयो रे ...


  फिर बसन्त  आयो रे ...
बहार भरा मौसम लायो रे 

खेतों में फूली है 
सरसों पीली - पीली 
जैसे मानो लगी है 
दिल को हरसाने 
 फिर बसन्त  आयो रे ...

बागों में फिर से 
पपीहे की पीहू है गूंजी 
जैसे मानो कोई सुन्दर 
धुन हो छेड़ी 
 फिर बसन्त  आयो रे ...

अठखेलियाँ करती नदी 
फिर चली अपनी ही धुन में 
देने जीवनदान सबको 
 फिर बसन्त  आयो रे ...

भँवरे  ने भी नई कली को 
स्पर्श किया 
और एक मदहोशी भरा 
चुम्बन ले उड़ चला 
 फिर बसन्त  आयो रे ...

हर दिल ने छेड़ी है एक नई धुन 
कि अब खुशहाल हुआ जीवन 
  फिर बसन्त  आयो रे
बहार भरा मौसम लायो रे।।


Tuesday, February 19, 2013

इजहार भी तो जरूरी है ...

किसी को चाहते रहना
खता तो नहीं ...
अपनी चाहत का इजहार करना
गुनाह तो नहीं …
वो रूठने और मनाने  की चाहत रखना
पनाहों में बुलाने की ख्वाहिश करना ...
मुकद्दर में लिखा होगा तभी मिलेगा
ये कहकर ...
वक्त को गवांना सही भी तो नहीं
प्यार किया है तो ...
हाँथ बढाकर
उसका इजहार भी तो जरूरी है।।

Thursday, February 14, 2013

प्रीत की रीत ...

प्रीत की रीत भी बड़ी प्यारी है,
एक महका सा एहसास
तो कभी खुशियों आभास है ये ...

कभी बारिश की बूंदों की तरह
रिमझिम करता सावन है ये ...

कभी बसंत में खिले हुए फूलों पर
भवरों का एहसास है ये ...

तो कभी अँधेरी रातों में
जुगुनुओं की रोशिनी है ये ...

कभी अनछुई सी यादें
तो कभी तुम्हारा एहसास है ये।।




Friday, February 08, 2013

तुम्हारी याद में ...(कुछ शिकायतें )

हमें आज फिर वो दिन याद आ रहे हैं 
जब तुम हमारे साथ थे,
आज ही का वो दिन है जिसके बाद 
तुम हमारे बीच नहीं हो।
आज ही तो वो दिन है 
जो कई साल पीछे छोड़ आई हूँ,
लौट जाना चाहती हूँ उन पलों में 
वापस बुलाना चाहती हूँ तुम्हे।
बस तुम्हारा एहसास ही तो साथ है 
जो एक पल भी दूर जाता नहीं,
कैसे कहूँ किससे कहूँ 
कि कितना याद आ रहे हो तुम।
कभी-कभी तो दिल करता है 
कि आके लग जाऊं तुम्हारे गले से, 
छोड़ के इस दुनिया के सारे भ्रम।
फिर पीछे देखती हूँ तो एहसास होता है 
की तुम्ही ने तो दी हैं ये जिम्मेदारियां,
ये माँ की सूनी आँखे 
और भाई के सपने।
आखिर कैसे मुहँ मोड़ सकती हूँ इनसे 
मैं तुम्हारी तरह नहीं हो सकती, 
तुम्हारे जैसा भी नहीं कर सकती 
क्यूंकि मुझे एहसास है उन जिम्मेदारिओं का 
जो तुमने मुझे दी हैं,
निभाउंगी इन्हें पूरी लगन से 
न छोडूंगी इनका साथ कभी तुम्हारी तरह।।

I Love you Papa ...miss you so much ...




Sunday, February 03, 2013

मेरी माँ ...


कुछ प्यारी सी
कुछ भोली सी है
मेरी माँ ...
कभी लड़ती है
कभी डाटती है
और कभी बिना बात के
प्यार भी जताती है
मेरी माँ ...
काम करते नहीं थकती
कुछ भी  मांगो
झट मिल जाता है
ऐसी है मेरी माँ ...
लाड़ली हूँ मैं उसकी
कहती है मुझे वो
अपने कलेजे का टुकड़ा
लाख दर्द भरे हों
उसके दिल में
पर कभी न जताती
मेरी माँ ...
कभी सखियों की तरह
करती है बातें
कभी शिक्षकों की तरह
लगती है डाटने
बस कुछ ऐसी ही है
मेरी माँ ...
कुछ प्यारी सी
कुछ भोली सी है
मेरी माँ ...

Friday, February 01, 2013

बातें ...कुछ अनकही सी ...



कुछ अनकही सी बातें इस दिल की 
कुछ अनकही सी बातें उस दिल की 
फिर भी बिना कहे यूँ ही 
सबकुछ समझ जाना 
इशारों- इशारों में ही 
अपनी बातें कह जाना ...
बार- बार वो दिलों का धड़कना 
तुम्हें गली से गुजरते देख 
मेरा वो सरमा के छुप जाना 
फिर रोशनदान से 
चुपके से तुम्हे देखना 
हाँ आज भी याद है मुझे सबकुछ 
नहीं भूली मैं ...
तुम्हारा वो पलट-पलट कर मुझे देखना 
फिर दबे पाँव आके मेरा हाथ पकड़ना 
और फिर ये कहना 
कि रहेंगे हम साथ सदा 
तू डरती क्यों  है इतना 
मैं हूँ न ...
हाँ आज भी याद है तुम्हारा वो साथ 
पर तुम नहीं हो आज 
जाने कहाँ खो गये 
रह गई हैं तो बस तुम्हारी यादें 
ये सुनी गलियां 
और ये सूनापन मेरी ज़िन्दगी का।।

Saturday, January 26, 2013

कैसे शुभकामनाएं दूँ ...


कैसे शुभकामनाएं दूँ तुमको 
इस गड्तंत्र दिवस की 
बोलो कोई है वज़ह 

हमारा भारत आज भी तो वहीं है 
जहाँ कल था 
जाके देखो उन गाँव में 
जहाँ आज भी बिजली 
की ज़गह दिया जलता है 

उन मिट्टी की दीवारों 
से आज भी बारिश 
में पानी अन्दर आता है 

तब अपने तन को 
ढकने के बजाय 
वो आज भी अपने 
जानवरों को ढकते है 

उस कोमल मन को 
आज भी ये जानवर 
बच्चों की तरह ही प्यारे हैं 

आज भी राशन की 
लम्बी लाइन लगाना 
और घंटों बाद ये पता चलना 
की आज भी बंद है 

किस हक़ की बात करें हम आज  
जो किसी को मिला ही नहीं 

बस कुछ एक नेताओं 
की झोली में समिटकर 
ख़त्म हो जाता है।।

Friday, January 18, 2013

"गुजारिश "

आज तुमसे कुछ कहना और 
कुछ सुनना चाहती हूँ,
फिर से तुम्हें पलकों के 
साए में रखना चाहती हूँ।

सदियों से इंतज़ार था तुम्हारा,
अब आये हो तो पहलु में 
ठहरो भी ज़रा।
कुछ कहो और 
कुछ सुनो तो ज़रा,

हवाओं का अंदाज़ भी 
कुछ बदला - बदला सा है,
कुछ तुम्हारी ही तरह 
खफा - खफा सा है।

गर शिकायत है हमसे 
तो कहो तो सही,
बिना कहे तूफां लाना 
सही भी तो नहीं है।।



Friday, January 11, 2013

कैसी ये सौगात ...

रिश्तों की ये अजब सी सौगात है,
आज खुद हमें ये एहसास है।

क्या ज़माना आ गया है ,
कि  कोई रिश्ता न अब खास है।

माँ - बाप का नाम जल्द कहीं आता नहीं,
हम कहतें हैं आज हमारा उनसे कोई नाता नहीं।

कैसा अजब है ये दुनिया का दस्तूर,
जो हमें इस दुनिया में लाया 
वही है अब हमसे दूर।

तो चलो आज ये 
खुद से वादा कर लें,
अपने माँ - बाप का सहारा बन लें।

जिसने हमें जीना सिखाया,
उनकी ज़िन्दगी को खुशियों 
से भर दें।।

Wednesday, January 02, 2013

चिंतनीय विषय ...

आज के  हिंदुस्तान टाइम्स के सर्वे की एक  रिपोर्ट के अनुसार अठत्तर प्रतिशत महिलाएं दिल्ली में  बीते वर्ष सुरछित नहीं थीं ...अब चिंता का विषय ये है कि आने वाला साल इस राजधानी को क्या एक सुरक्षित भाविष्य दे पायेगा ? क्या कोई औरत, बेटी, बहन अपने आपको सुरक्षित महसूस कर पायेगी यहाँ पर ...कहने को लोग कहतें हैं की एक औरत ही औरत का दर्द समझती है ...पर यहाँ तो हमारी सरकार भी एक महिला ही चला रही हैं।।

अब सबसे ज्यादा चिंतित तो वो माता - पिता हैं जिनकी बच्चियां  बड़ी हो रही हैं ...आजकल तो शायद उनके गले के नीचे निवाला भी नहीं उतरता होगा ...हर रात बस यही चिंता सताती होगी कि क्या उनकी औलाद सुरक्षित है ?

हर रात माँ मेरे पास आती है 
मेरे सिरहाने आके
मेरे सर पर अपना 
हाँथ फिराती है ...

और फिर अनकहे मन से 
दबे पाँव वापस 
चली जाती है ...

उसे लगता है अब 
सो चुकी है उसकी लाड़ली 
यह सोचकर वह उस रात 
तो शुक्र मानती है ...

वहाँ बाबा भी बंद आँख 
करवटें बदलते रहतें हैं 
बस कल की  चिंता में।।



Tuesday, January 01, 2013

इस नव वर्ष पर ...

नया साल आया है
कुछ सपने सुहाने लिए
कुछ नगमें सुहाने लिए ...

इसलिए नव वर्ष का
स्वागत करो दिल की
गहराइयों से ....

माना कि एक और
वर्ष बीत गया
बहुत सारी मीठी - कड़वी
यादों के साथ ...

लेकिन जो आया है
उसे अपना बनाओ
नई उम्मीदों के साथ ...

कुछ सपने सजाओ
कुछ नगमें गुनगुनाओ
ताकि पूरा कर सको उन्हें तुम
सच्ची लगन के साथ ।।