Monday, November 23, 2015

गलतफहमियाँ गर होती ...

गलतफहमियाँ  गर होती
तो हम शिकायत न करते
तुमने बिना रूबरू हुए
फैसले खुद ही ले लिए !!

Saturday, November 21, 2015

ये वादियाँ हमें कितना कुछ सिखाती हैं ...




ये वादियाँ हमें कितना कुछ सिखाती हैं 
अन्जाने लोगों को अच्छा दोस्त बनाती हैं 
नहीं सोंचा था.…
एक डोर में बंध पाएंगे हम
दोस्ती का मीठा रिश्ता बनायेंगे हम
पर कितना आसान था ये
या ये कह लो …
इन वादियों ने हमें करीब ला दिया
पर कुछ भी हो
हमें अच्छे दोस्तों से मिला दिया!!

Sunday, November 15, 2015

तुम्हे वक़्त ही कहाँ मिला हमें समझने का...

कभी खुद पे कभी हालात पे रोना आया 
बात निकली तो हर बात पे रोना आया 
सोंचती हूँ तो समझ नहीं आता 
कि तुम्हें किस बात पे गुस्सा आया 
ख़फ़ा  थे तो कह के  देखते 
शायद तुम्हारी नाराजगी की वज़ह 
हम समझ पाते!
मूक रहकर…
हम तुम्हे कैसे समझ पाते 
चलो छोड़ो जाने भी दो 
क्या सिकवा करें तुमसे 
हमारी शिकायत की वज़ह 
सही भी तो न  होगी 
तुम्हे वक़्त ही कहाँ मिला 
हमें समझने  का  !!



Monday, October 19, 2015

एक सपना बुना था...

बचपन में उड़ते परिंदे को देखकर
एक सपना बुना था मैंने
हाँ उड़ना चाहती थी
उस परिंदे की तरह
छूना चाहती थी नीले
आसमान को.…
और हौंसले की कमी भी न थी
पर शायद वक़्त ने
पर ही क़तर दिए !!!

Thursday, August 06, 2015

चले जा रहे हैं...

बस चले  जा रहे हैं
इस अन्जानी सी राह पे
न मंजिल का कुछ पता
न राहों से कोई वास्ता
बस अपनी ही धुन में
चले जा रहे हैं
हाँ तुम्हारे साथ का
भीना सा एक एहसास है
बस उस एहसास के साथ
एक भरोसे  की डोर
बाँधी है मैंने
अब डोर कितनी
मजबूत है
ये फैसला
वक्त का होगा !!!

Thursday, July 16, 2015

साज़िशें वक़्त की

कैसी हैं ये साज़िशें वक़्त की
जहाँ हर वक़्त तुम याद आते हो
बचपन की वो बातें
आँख बंद करते ही
याद दिलाते हो
फिर से जीना चाहती हूँ
वो लम्हे…
वो बेफिक्री की ज़िन्दगी
जहाँ तुम थे मेरा
हाँथ थामे
जहाँ  ख़ुशी और गम का
बँटवारा भी न था
या ये कह लो तुम्हारे साये में
हमें  इनका फरक भी पता न था
लौट जाना चाहती हूँ
उस बचपन में जहाँ तुम थे
न कि तुम्हारी यादें !!!





Monday, June 15, 2015

ये बारिश और तरशती आँखे...

अजीब सी कसक है इन आँखों में
एक सूनापन या
किसी के आने का इन्तज़ार
एक गुजरा लम्हा या
एक नए सपने की आस
तुम्हारी आहट तो सुनाई देती है
पर तुम दिखाई नहीं देते
उफ़ ये डरी  सी सहमी सी आँखे
कुछ  तो कहना चाहती हैं
बारिश की हर गिरती बूँद के साथ
तुम्हारी राह तकना चाहती हैं
कभी तो कुछ तो बोलोगे
कुछ तो कहोगे
इस आस में बेपनाह
तुम्हारी राह तकना
चाहती हैं !!!

Saturday, June 06, 2015

वक़्त मिला तो सोंचा...

आज कुछ वक़्त मिला तो सोंचा 
ज़िन्दगी के कुछ पन्ने पलट के देख लूँ 
सुना था लोगों को कहते हुए 
कि ज़िन्दगी इतनी आसाँ नहीं होती 
शायद ये बात अब समझ में आई 
हालाँकि  सुनने और समझने में 
फरक बहुत है 
तभी तो शायद इतना वक़्त लग गया 
इस फरक को समझने में 
हाँ कदम थोड़े डगमगाए जरूर थे 
लेकिन हौंसले की कमी  न थी !!!

Tuesday, May 26, 2015

हवाओं से भेजा है पैगाम तुमको ...

हवाओं से भेजा है पैगाम तुमको 
जल्द ही वो तुम तक 
पहुँच जायेगा 
कोई झोका जब 
तुम्हे छू के जाएगा 
समझ लेना मेरा पैगाम 
तुम तक पहुँच जायेगा !!! 

Thursday, March 19, 2015

वक़्त को वक़्त की क्या जरूरत...

कहतें हैं वक़्त हर
जख्म को भर देता है
फिर वक़्त को वक़्त की
क्या जरूरत !!!


Thursday, March 12, 2015

वो सुहाने पल...




कच्ची उम्र के वो सपने
कितने सुहाने लगते थे
पेड़ की टहनियों के
झूले झूलना
उँगलियों से
रेत के घर बनाना
वो घर का आँगन
सुबह सूरज की
वो पहली किरण
कितने सुहाने पल थे वो
बीत गया वो बचपन
वो अल्ल्हड़पन
वो बातों के बताशे
वो बिना बात के मुहं
फुला के बैठ जाना
वो चौमासे के पानी में
कागज की नाव चलाना
वो भीग भाग कर
गली में छुप जाना
वो साँझ वो सवेरा
वो बचपन सुनहरा
बीत गया सब
बस रह गई हैं
वो मीठी सी यादें
जो जाने अनजाने
चेहरे पे एक
मुस्कान बिखेरती हैं !!! 

Thursday, February 26, 2015

यादों से अपनी कह दो...

यादों से अपनी कह दो
थोड़ा कम सताया करें
वक़्त बेवक़्त हमें
यूं न रुलाया करें !
हमने कब कहा था
तुमसे दूर जाने को
फैसला तुम्हारा था
तो इन यादें को भी
तुम्ही सम्भालो !!!





Friday, February 20, 2015

इस दोस्ती को बहुत ही अज़ीज़ माना है हमने !!!




आज इस दोस्ती को 
वर्षों बीत गए 
नहीं पता कैसे 
अदा करूँ 
शुक्रिया तुम्हारा 
कैसे बीते ये लम्हे 
वक़्त का कुछ 
पता ही न चला 
हाँ पर इतना 
याद है… 
जब भी मुझे 
तुम्हारी जरूरत थी 
तुम हमेंशा मेरे पास थे 
कभी कुछ कहने की 
जरूरत नहीं पड़ी 
तुमने हमेंशा ही 
समझा मुझको
बिना कुछ कहे 
हमेंशा साथ 
खड़े थे तुम मेरे 
मेरे पागलपन को 
भी सराहा तुमने 
माना कि  बहुत 
परेशां किया है तुमको 
पर इस दोस्ती को 
बहुत ही अज़ीज़ माना 
है हमने !!!

Thursday, February 19, 2015

तुम्हे मेरी इतनी फ़िक्र क्यों है...



हाँ अभी कुछ दिनों पहले 
तुमने कहा था मुझसे कि 
तुम्हारी हँसी अच्छी लगती है 
जब उस दोराहे पे 
मैं तुम्हारा हाँथ 
थाम कर चल रही थी 
तब तुमने मेरी 
तरफ देखकर 
कहा था…
हमेंशा यूँ ही 
मुस्कराती  रहना  
क्यूंकि तुम हँसते 
हुए अच्छी लगती हो 
मैंने तुम्हारी आँखों में 
एक फ़िक्र देखी थी 
जो मेरे लिए थी 
उस वक़्त मैंने तुम्हारी 
बात को हँसी  में टाल दिया था 
पर वक़्त बेवक़्त ये बात 
याद तो आती है मुझे 
पर समझ नहीं पाई 
कि तुम्हे मेरी इतनी 
फ़िक्र क्यों है!!!


Friday, February 13, 2015

कैसा दिखता होगा चाँद वहाँ से...





सोंचती हूँ कैसा दिखता  होगा
चाँद वहाँ  से
शायद जैसा यहाँ  से दिखता  है
पर परदेस में
शायद वो भी कुछ
अनजाना सा हो
कुछ यादों का साक्षी
कुछ बातों का राजदार
जब भी देखोगे अपनी
बंद खिड़की से
कुछ यादें सहला जाएँगी
कुछ नए सपने बुन जाएंगे
और कभी कभी दिल को
किसी के पास होने का
एहसास तड़पा जाएगा। 

Thursday, February 05, 2015

तुम्हारी हसरत थी ...

तुम्हारी हसरत थी
हमें पाने की
और हमारी चाहत  थी
तुम्हे अपना बनाने की
पर शायद मेरा दिल
तुम्हे समझ नहीं पाया
तुम्हारी आहटों को
पहचान नहीं पाया
पर  सोंचती हूँ
कैसे पहचानती तुम्हे मैं
जब तुम खुद की
धड़कनो को
समझ नहीं पाये!!!



Thursday, January 29, 2015

आज किनारे पर बैठकर...

आज किनारे पर बैठकर
समंदर की लहरो को देखा
तो ख्याल आया
कहीं न कहीं ये समंदर
तुम्हे छू रहा होगा
कुछ अलग ही एहसास था
हाँ शायद …
तुमसे दूर  होने का
या समंदर के सहारे
तुम्हे अपने पास
महसूस करने का
पता नहीं…
पर हाँ किनारे बैठकर
बार बार दिल यही
कह रहा था …
इस समंदर के किसी
छोर पर तुम हो
ये प्यारा सा एहसास
शायद मुझे कहीं छू रहा था!!

Monday, January 12, 2015

कोई तो बता दो...

कोई तो बता दो
कि इंसान की पहचान
कैसे की जाए???
कुछ लोग कहते हैं
आँखों से इंसान
पहचाना जाता है
पर गर उसकी आँखें
ही झूठी हों तो क्या??
कुछ लोग कहतें हैं
दिल से इंसान की
पहचान होती है
पर गर उसकी
धड़कन गुम सी हो ???
जानती हूँ नहीं आसाँ है
किसी को समझ पाना
पर गर दिल किसी
को समझने की जिद करे
तो उस दिल का क्या करें !!!

Wednesday, January 07, 2015

पलकों में आज फिर ये नमी क्यों आई है...

पलकों में आज फिर
ये नमी क्यों आई है
शायद तुम्हारी कमी
आँखों में इसे लेके आई है
शिकवा करूँ भी तो किससे
तुमसे या इस खुदा  से
जिसने तुम्हारी साँसें
तुम्ही से चुराई हैं
 आज फिर उन लम्हों
को महसूस किया हमने
कह नहीं सकती
कितना दर्द हुआ हमको
पर पूछना चाहती हूँ
तुमसे भी एक बात
क्या तुम्हे भी इतना ही
दर्द होता है !!!