कच्ची उम्र के वो सपने
कितने सुहाने लगते थे
पेड़ की टहनियों के
झूले झूलना
उँगलियों से
रेत के घर बनाना
वो घर का आँगन
सुबह सूरज की
वो पहली किरण
कितने सुहाने पल थे वो
बीत गया वो बचपन
वो अल्ल्हड़पन
वो बातों के बताशे
वो बिना बात के मुहं
फुला के बैठ जाना
वो चौमासे के पानी में
कागज की नाव चलाना
वो भीग भाग कर
गली में छुप जाना
वो साँझ वो सवेरा
वो बचपन सुनहरा
बीत गया सब
बस रह गई हैं
वो मीठी सी यादें
जो जाने अनजाने
चेहरे पे एक
मुस्कान बिखेरती हैं !!!
Time never wait for any one , it walks on.
ReplyDeleteइस कच्ची उम्र के सपने बुढापे तक भी नही जाते ...
ReplyDeleteभावभीनी रचना ...
बहुत सुंदर रचना.
ReplyDeleteनई पोस्ट : जाते हुए वसंत का बौरायापन
मनभावन यादों की बहुत सुंदर तसवीर खींची है आपने बधाई स्वीकार करें ...सादर
ReplyDeleteयादों का खूबसूरत सफ़र पसंद आया।
ReplyDeleteप्रतिभा जी बहुत सुन्दर और जीवंत बाल चित्रण
ReplyDeleteभ्रमर ५
क्या बात है आपने पूरे बचपन के कुछ बिन्दुओं को ऐसे समेटा कि एक सांस में पढता चला गया ...........बहुत अच्छी रचना!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
ReplyDeleteMesmerizing :)
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