Friday, January 11, 2013

कैसी ये सौगात ...

रिश्तों की ये अजब सी सौगात है,
आज खुद हमें ये एहसास है।

क्या ज़माना आ गया है ,
कि  कोई रिश्ता न अब खास है।

माँ - बाप का नाम जल्द कहीं आता नहीं,
हम कहतें हैं आज हमारा उनसे कोई नाता नहीं।

कैसा अजब है ये दुनिया का दस्तूर,
जो हमें इस दुनिया में लाया 
वही है अब हमसे दूर।

तो चलो आज ये 
खुद से वादा कर लें,
अपने माँ - बाप का सहारा बन लें।

जिसने हमें जीना सिखाया,
उनकी ज़िन्दगी को खुशियों 
से भर दें।।

13 comments:

  1. nicely written didi...inspiring one!!

    ReplyDelete
  2. क्या बात है!!बहुत सुंदर !
    वाह ...मन को छू गयी रचना प्रतिभा जी !!

    ReplyDelete
  3. बहुत सुंदर ! मन को छूने वाली रचना !

    पोस्ट पर आने के लिए आभार,,,प्रतिभा जी,,,

    recent post : जन-जन का सहयोग चाहिए...

    ReplyDelete
  4. रिश्तो को उजागर करती बहुत ही सुंदर रचना।

    ReplyDelete
  5. रिश्तो को उजागर करती बहुत ही सुंदर रचना।

    ReplyDelete
  6. सुन्दर रचना के लिए बधाई!
    मकरसंक्रान्ति की शौभकामनाएँ।

    ReplyDelete
  7. सुन्दर रचना के लिए बधाई!
    मकरसंक्रान्ति की शौभकामनाएँ।

    ReplyDelete
  8. सुंदर अर्थपूर्ण बातें

    ReplyDelete
  9. सार्थक सन्देश देती सुन्दर कविता। पहली बार आना हुआ आपके ब्लॉग पे, अच्छा लगा।
    सादर
    मधुरेश

    ReplyDelete
  10. बहुत प्यारी रचना प्रतिभा....
    सुन्दर से ख्यालों को सहज अभिव्यक्ति दी है आपने....

    अनु

    ReplyDelete
  11. Anonymous3:11 PM

    सुनो आजकल की सन्तान
    मात-पिता को दो सम्मान

    सच्ची सोच - सुंदर रचना

    ReplyDelete
  12. रिश्तों की ये अजब सी सौगात है,
    आज खुद हमें ये एहसास है।

    क्या ज़माना आ गया है ,
    कि कोई रिश्ता न अब खास है।

    .सच अब सिर्फ मतलब की रिश्तों में तब्दील हो रही है दुनिया ...बहुत बढ़िया प्रस्तुति

    ReplyDelete
  13. Lajawab...
    Zindagi aur humare bich ki sachhayi batati hui badhiya kavita...

    ReplyDelete