कल रात चाँद से कुछ गुफ़्तुगू की
तुम्हारे रूठे होने की शिकायत की
तो हँस के चाँद ने कहा....
मिला है तुझे दोस्त तेरे ही जैसा
जिसे रूठने मानाने का खेल
बखूबी आता है
जा के उसी से पूछ ले
कि उसके मन में क्या छुपा है
कहीं सच में दिल को कुछ चुभा है
या वो तुझे परेशां करके यूँही हंस रहा है !!
तुम्हारे रूठे होने की शिकायत की
तो हँस के चाँद ने कहा....
मिला है तुझे दोस्त तेरे ही जैसा
जिसे रूठने मानाने का खेल
बखूबी आता है
जा के उसी से पूछ ले
कि उसके मन में क्या छुपा है
कहीं सच में दिल को कुछ चुभा है
या वो तुझे परेशां करके यूँही हंस रहा है !!
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (06-12-2016) को "देश बदल रहा है..." (चर्चा अंक-2548) पर भी होगी।
ReplyDelete--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
ये चुहल बाजी होती रहे ... ये शरारत चलती रहे तो जीना आसान हो जाता है ...
ReplyDeleteएक दम सही मशवरा ।
ReplyDeleteखूबसूरत
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