Tuesday, May 03, 2016

कल की सोंच में...

जब तुमसे कुछ कहने के लिए 
तुम्हारे पास आना चाहा 
तुम्हारे पास वक़्त ही न था .. 
जब तुम्हारी पनाहों में आकर 
कुछ वक़्त गुजारना चाहा 
तुम्हारे पास वक़्त ही न था .. 
हम वक़्त के ऐसे मोहताज़ क्या हुए 
कि  अब वक़्त आया तो 
न कुछ कहने को है 
न ही कुछ सुनने को !!!

7 comments:

  1. शायद इसी को विडम्बना कहते हैं !

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  2. समय का फेर होता है ... एक दिन जरूर दिन पलटते हैं ...

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  3. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 05-95-2015 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2333 में दिया जाएगा
    धन्यवाद

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  4. Anonymous9:33 AM

    ऐसा ही होता है

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  5. बहुत सही और भावपूर्ण

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  6. कटु सच्चाई

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  7. Kya ye alfaj man me yun h aaye honge
    areey koi to wajah hogi jisne dimag me piroye honge
    agar ye creativity hai dimag ki to acchi bat hai
    Nh to Chand ke pas ke taare aap bhi nh count kar paye honge

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