आँसुओं के मोती हम पिरो न सके,
तुम्हारी याद में हम रो न सके।
जख्म कुछ इतना गहरा दिया तुमने,
कि कोई दवा उसे भर न सकी।
लोग कहतें हैं अपनों का प्यार भरता है,
ऐसे जख्मों को।
पर गर अपने ही जख्म दें ,
तो दवा कौन करे??
तुम्हारी याद में हम रो न सके।
जख्म कुछ इतना गहरा दिया तुमने,
कि कोई दवा उसे भर न सकी।
लोग कहतें हैं अपनों का प्यार भरता है,
ऐसे जख्मों को।
पर गर अपने ही जख्म दें ,
तो दवा कौन करे??
आँसुओं के मोती हम पिरो न सके,
ReplyDeleteयाद में तुम्हारी हम रो भी न सके।
जख्म इतना गहरा दिया तुमने,
कि कोई दवा उसे भर न सके....
बहुत बढ़िया उम्दा प्रस्तुति,आभार,,प्रतिभा जी,,
Recent Post : अमन के लिए.
बात तो सही है ... सुंदर पंक्तियाँ
ReplyDeleteबहुत खूब!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति!
ReplyDeleteआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि-
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा आज रविवार (14-04-2013) के जय माँ शारदा : चर्चा मंच 1214 (मयंक का कोना) पर भी होगी!
अम्बेदकर जयन्ती, बैशाखी और नवरात्रों की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ!
सूचनार्थ...सादर!
बहुत - बहुत शुक्रिया शास्त्री जी ...
ReplyDeleteजख्म कुछ इतना गहरा दिया तुमने,
ReplyDeleteकि कोई दवा उसे भर न सकी। अपने वास्तव में अपने होते हैं तो कभी जख्म नहीं देते .......बहुत अच्छा सृजन ....
सुंदर प्रस्तुति .....बेहतरीन रचना !!
ReplyDeleteसुंदर प्रस्तुति .....बेहतरीन रचना !!
ReplyDeleteसुंदर प्रस्तुति .....बेहतरीन रचना !!
ReplyDeleteसुंदर रचना बधाई
ReplyDeleteसादर मेरे अंगना पधारें
''माँ वैष्णो देवी ''
आँसुओं के मोती हम पिरो न सके,
ReplyDeleteतुम्हारी याद में हम रो न सके।
बहुत ही उत्कृष्ट प्रस्तुति,आभार.
बेहद भावपूर्ण रचना, हार्दिक बधाई........
ReplyDeleteरब और अपनी आत्म-शक्ति ...।
ReplyDeleteगैरों को क्या पता कष्ट कैसे होगा ....
बहुत उम्दा प्रस्तुति,आभार प्रतिभा जी।
ReplyDelete-आइये जानते है नवरात्रि के खान -पान के बारे में-
अपने कभी जख्म दें तो सबसे बडी दवां समय ही होता है। समय के चलते घांव भरते हैं उन पर पपडी जमती है। और समय बितने के बाद घांव देने वाले को जब पता चलता है 'मैंने घांव दिया था' तब उसके वापसी के साथ जख्म मिटना भी हो सकता है।
ReplyDeleteपर अपेक्षा यह कि प्रेम में कोई किसी को घांव नहीं दे।
bahut khubsurat likhte ho...:)
ReplyDeleteअपनों के जख्म की दवा आसानी से नहीं मिलतो .. समय ही भरता है ये दर्द ...
ReplyDeleteभाव मय रचना ...
प्रतिभा जी ये तो सही कहा आपने जब अपने ही जख्म दे फिर दवा कौन करे ... लेकिन समय के साथ ऐसे जख्म भी भर जाते हैं .. बहुत बढ़िया रचना बधाई ..
ReplyDeleteभावपूर्ण रचना, बधाई....
ReplyDeleteसुन्दर व् सार्थक प्रस्तुति . हार्दिक आभार नवसंवत्सर की बहुत बहुत शुभकामनायें हम हिंदी चिट्ठाकार हैं
ReplyDeleteBHARTIY NARI
PLEASE VISIT .
सुन्दर पंक्तियाँ.
ReplyDeleteसुन्दर व् सार्थक प्रस्तुति ..बधाई....
ReplyDeleteSahi kaha...
ReplyDeletesach kahaa...
ReplyDeleteवाह ... बेहतरीन
ReplyDeleteप्रतिभा जितनी सुन्दर आप स्वयं हैं उतनी ही सुन्दर आपकी रचनाएँ और उनकी शब्दावली होती है | बहुत ही रोचक कविता | पढ़कर ह्रदय पुलकित हो गया | आभार | बहुत समय बाद आपके ब्लॉग पर आना हुआ पता नहीं आपके ब्लॉग अपडेट मेरे पास नहीं आ पा रहे हैं | इसलिए क्षमा चाहूँगा | बेहद उम्दा प्रस्तुति |
ReplyDeleteAti sundar
ReplyDeleteकभी कभी दर्द ही दवा बन जाती है ...
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ReplyDeleteगहन अनुभूति
सुंदर रचना
उत्कृष्ट प्रस्तुति
बधाई
आग्रह है मेरे ब्लॉग में भी सम्मलित हों
अपनों के दिए ज़ख्म वक्त भरता है....
ReplyDeleteअनु
बहुत ही बढ़िया
ReplyDeleteसादर
अपनों के जख्म की दवा ,सुंदर रचना बधाई....
ReplyDeleteसुन्दर पंक्तियाँ.बहुत ही रोचक कविता .....
गहन अनुभूति,बेहतरीन
सादर
kafi achchha laga ise pad ke....
ReplyDeleteबहुत ही गहरे भावो की अभिवयक्ति......
ReplyDeleteवाह !!!बहुत सुन्दर ...
ReplyDeleteवाह !!!बहुत सुन्दर ...
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