Passionate about poetry, nature and human psychology. A wanderer, firm believer of creativity, the best quality a person can acquire in his lifetime. This is the blog of Pratibha Verma.
Tuesday, December 21, 2010
किनारे कि तलाश में...
हम कश्ती में बैठे थे किनारे कि तलाश में , पर लहरों में कोई तो खलल थी , कोई तो तूफां था समंदर में| हम समझना चाहते थे कि समन्दर, इतना बेचैन क्योँ है आज | हम कुछ भी समझ पाते , किनारा तलाश कर पाते | उससे पहले ही हम अपनी कश्ती डूबा बैठे||
Abhi khivayya kashti me maujud hai,
ReplyDeleteabhi Dil me ummid baki hai;
kashti, dubne nahi denge,
jab tak samundar me hum jinda hai.
बेहतरीन !
ReplyDeleteसादर
वाह,,,लाजबाब प्रस्तुति,,
ReplyDeleterecent post: गुलामी का असर,,,
बहुत सुन्दर .रूपकात्मक परिधान कविता का आकर्षक है मोहक है .
ReplyDeleteशुक्रिया आपकी टिप्पणी का .समझ न आने वाली घटनाएं आकस्मिक ही घटती हैं .गेमचेंजर भी .
ReplyDeleteबहुत ही सार्थक,बेहतरीन अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteआज 21/फरवरी /2015 को आपकी पोस्ट का लिंक है http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
ReplyDeleteधन्यवाद!
बहुत ही उम्दा और बेहतरीन...
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग पर आप सभी लोगो का हार्दिक स्वागत है.