मिट्टी में खेलते हुए सपने देखें हैं मैंने
इन नन्हें हांथों की लकीरें देखीं हैं मैंने
कितना प्यारा है ये बचपन
जहाँ न कल की कोई फिक्र है
न ही आज की कोई चिंता
बस मासूमियत से
भरे ये चेहरे
हँसी से खिलखिलाते हुए
इन नन्हें क़दमों की
आहट भी कितनी प्यारी है
बिना किसी छल के
चले जा रहें हैं
हाँ इन मुस्कुराते हुए
चेहरे की लाली देखी है मैंने
मिट्टी में खेलती हुई
ज़िन्दगी देखी है मैंने !!
wow di kya likhte Ho. dil choo liya
ReplyDeletebhut acha likhte ho di
ReplyDeleteकाश इस ज़िंदगी को किसी की
ReplyDeleteनज़र ना लगे
बहुत सुन्दर
ReplyDeleteसच कहा है इन निश्छल बचपन में सपने खिलते हैं ... काश इन्हें कोई नज़र ना लगे ... सुंदर रचना है ...
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