इस दिवाली चलो कुछ दिए जलाएं
कुछ उदास चेहरों की
मुस्कुराहट लेके आएं
जो हमारे लिए जीतें है
जो हर वक़्त हमारी जररूरत
पूरी करतें हैं
जो हमारी ज़िन्दगी का
एक अटूट हिस्सा
बन चुके हैं
चलो आज हम उनके
चेहरे पे थोड़ी सी
हंसी लेके आएं
कुछ हंसी की पटाखे फोड़ें
उनकी आँखों की झिलमिल सी
मुस्कराहट लेके आएं
इस दिवाली चलो कुछ दिए जलाएं
कुछ उदास चेहरों की
मुस्कुराहट लेके आएं !!!
आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि- आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल रविवार (23-10-2016) के चर्चा मंच "अर्जुन बिना धनुष तीर, राम नाम की शक्ति" {चर्चा अंक- 2504} पर भी होगी!
ReplyDeleteअहोई अष्टमी की
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत सुन्दर
ReplyDeleteसुन्दर रचना
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