क्यों कुछ नहीं बोलती ये रातें
क्यों नहीं करती हैं ये बातें
शाम की सुहानी छांव के बाद
माना हंसी हैं ये रातें
चाँद की रौशनी में डूबी
शबनमी ये रातें
पर कभी कभी ये ख़ामोशी भी
बड़ी बेगानी सी लगती है
अनजाना है कोई वो
जिसके बारे में गुफ्तगू करनी है
इन रातों से...
पर न जाने
क्यों कुछ नहीं बोलती ये
आखिर क्यों खामोश हैं ये रातें !!!
Nice poetry :D
ReplyDeleteNice poetry :D
ReplyDeleteध्यान से सुनिये इनकी गुपचुप बातें
ReplyDeleteकितनी रातें ... खामोश सी रातें पर एहसास में सब कुछ कह जाती रातें ...
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