Sunday, June 12, 2016

दिल टूटने का ज़िक्र हम करना नहीं चाहते ...

दिल टूटने का ज़िक्र हम करना नहीं चाहते
तुम्हारी यादों के साये में हम रहना नहीं चाहते
वक़्त रहते ही संभलने की कोशिश करेंगे हम
इस खुदगर्ज़ दुनिया में बेवक़्त मरना नहीं चाहते हम !!!

7 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (13-06-2016) को "वक्त आगे निकल गया" (चर्चा अंक-2372) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (13-06-2016) को "वक्त आगे निकल गया" (चर्चा अंक-2372) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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    Replies
    1. बहुत-बहुत शुक्रिया शास्त्री जी मेरी रचना यहाँ तक पहुँचाने के लिए।

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  3. Anonymous10:50 AM

    बिलकुल सही

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  4. खूबसूरत पंक्तियाँ।

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  5. वास्तव में अब प्रेम में कोई पागल नहीं होना चाहता क्योंकि यह अब दिल का नहीं दिमाग़ का मामला बन चुका है ।

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