न जाने कहाँ से आ गए
दरमियाँ हमारे फ़ासले।
न दिल की सुनी तुमने कभी
न जुबाँ से कहा हमने कभी।
बस अपने अहम की आग
में जलते रहे तुम ।
न हमने कभी कोशिश की
बुझाने की ।
अब फासले इस कदर
बढ़ चुके हैं दरमियाँ हमारे ।
सोंचती हूँ क्यों न
हम अपनी राह ही बदल लें।।
दरमियाँ हमारे फ़ासले।
न दिल की सुनी तुमने कभी
न जुबाँ से कहा हमने कभी।
बस अपने अहम की आग
में जलते रहे तुम ।
न हमने कभी कोशिश की
बुझाने की ।
अब फासले इस कदर
बढ़ चुके हैं दरमियाँ हमारे ।
सोंचती हूँ क्यों न
हम अपनी राह ही बदल लें।।