Passionate about poetry, nature and human psychology. A wanderer, firm believer of creativity, the best quality a person can acquire in his lifetime. This is the blog of Pratibha Verma.
Monday, December 23, 2019
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Friday, October 18, 2019
Monday, September 30, 2019
Sunday, September 29, 2019
Friday, September 27, 2019
Monday, April 08, 2019
"आख़िर कब बदलेगी सोंच"
मेरी एक सहेली है
नाम है उसका छबीली
नैन नक्श बहुत ही कटीले हैं
उसी तरह के उसके विचार रुढिता से कहीं दूर
भाववादी लेकिन आज के हैं
क्योंकि वो आज की लड़की है
सोंच समझ में उसकी कोई कमी नहीं है
लेकिन आजाद ख्यालों की लड़की है वो
अच्छी खासी नौकरी है उसकी
अच्छा कमाती भी है
पर किसी के सामने झुकी नहीं
दो एक साल से रिश्ता नहीं हो रहा उसका
माँ बाप थोड़ा परेसान हैं
समाज के ताने और दुनियादारी से
मानो बचना चाहते हैं वो
अपनी ही बेटी से थोड़ा उखड़े रहते हैं
पर हाँ प्यार अभी भी उसे उतना ही करते हैं
पर जाने अनजाने उसका दिल
दुखा ही जाते हैं
पर छबीली को दीन दुनिया का
कोई खाश फ़र्क नहीं पड़ता
वो तो अपनी ही दुनिया में मस्त रहती है
पर हाँ अपने माँ बाप को
दुखी नहीं देखना चाहती
बहुत दिनों बाद आज वो
एक लड़के से मिलने को तैयार हो गई
फीके मन से ही सही
सब खुश थे घर में सुबह से
खैर शाम हो गई और पता भी नहीं चला
पूरा वक़्त तैयारियों में ही निकल गया
सबकुछ अच्छा चल रहा था
अचानक पता चला पापा ने रिश्ते को न कर दी
सबकुछ तो इतना अच्छा था
ये सुन कर छबीली मन ही मन मुस्कुराई
और वज़ह जानने के लिए सबके पास गई
पता चला पापा गुस्से से भन्नाए अभी भी बैठे हैं
छबीली को लगा इस बार तो
मैंने कोई गलती भी नहीं की
काफी सोंचने के बाद आखिर उससे रहा न गया
और पापा से पूछना ही वाजिब समझा
फिर पापा बिना साँस लिए बस बोलते ही गये
आये थे रिश्ता लेकर तो रिश्ते की बात करते
भले मानस भला ऐसे कौन बात करता है
उन्होंने कहा हमें दहेज वहेज तो चाहिए नहीं
फिर आपकी जो श्रद्धा
आप ही की बेटी है
आपको उसकी खुशी के लिए
जो भी सही लगे
हम दहेज़ के लोभी नहीं हैं
अरे हमारी जमा पूँजी हमारी बेटी है
दहेज मांगने का ये कैसा नया तरीका है
आखिर छबीली ने अपने पापा की
सोंच जाने अनजाने ही सही
बदल ही डाली।।
Saturday, February 02, 2019
शायद बस तुम्हे ही नहीं पता ...
शायद बस तुम्हे ही नहीं पता
पर ये खबर पूरे शहर में आम हो चुकी है।
हम तुम्हारे इश्क़ में
सरेआम हो चुके हैं।
बस अब इंतज़ार यही है
कि कब पलट के देखोगे मुझे
उस नज़र से !
सज़दे में तेरे हम
सुबह और शाम बैठें हैं।
तुम्हारा इंतज़ार कुछ इस कदर करते हैं
अपने कमरे की हर एक परछाईं को
हम तुमसे जोड़ बैठें हैं ।
हाँ जब तुम सामने आते हो
तो नज़र नहीं उठती
साँस थम सी जाती है
और हलक से आवाज़ नहीं निकलती।
जब तुम मेरे करीब से गुजरते हो
सब महक सा जाता है
और मेरे आस पास सिर्फ सन्नाटा हो जाता है।
बस अब इंतज़ार उस पल का है
जब तुम इन झुकी नज़रों का
मतलब समझ पाओगे।
उस दिन शायद हम
इश्क -ए - इज़हार कर पाएंगे।।
पर ये खबर पूरे शहर में आम हो चुकी है।
हम तुम्हारे इश्क़ में
सरेआम हो चुके हैं।
बस अब इंतज़ार यही है
कि कब पलट के देखोगे मुझे
उस नज़र से !
सज़दे में तेरे हम
सुबह और शाम बैठें हैं।
तुम्हारा इंतज़ार कुछ इस कदर करते हैं
अपने कमरे की हर एक परछाईं को
हम तुमसे जोड़ बैठें हैं ।
हाँ जब तुम सामने आते हो
तो नज़र नहीं उठती
साँस थम सी जाती है
और हलक से आवाज़ नहीं निकलती।
जब तुम मेरे करीब से गुजरते हो
सब महक सा जाता है
और मेरे आस पास सिर्फ सन्नाटा हो जाता है।
बस अब इंतज़ार उस पल का है
जब तुम इन झुकी नज़रों का
मतलब समझ पाओगे।
उस दिन शायद हम
इश्क -ए - इज़हार कर पाएंगे।।
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