कैसी हैं ये साज़िशें वक़्त की
जहाँ हर वक़्त तुम याद आते हो
बचपन की वो बातें
आँख बंद करते ही
याद दिलाते हो
फिर से जीना चाहती हूँ
वो लम्हे…
वो बेफिक्री की ज़िन्दगी
जहाँ तुम थे मेरा
हाँथ थामे
जहाँ ख़ुशी और गम का
बँटवारा भी न था
या ये कह लो तुम्हारे साये में
हमें इनका फरक भी पता न था
लौट जाना चाहती हूँ
उस बचपन में जहाँ तुम थे
न कि तुम्हारी यादें !!!
जहाँ हर वक़्त तुम याद आते हो
बचपन की वो बातें
आँख बंद करते ही
याद दिलाते हो
फिर से जीना चाहती हूँ
वो लम्हे…
वो बेफिक्री की ज़िन्दगी
जहाँ तुम थे मेरा
हाँथ थामे
जहाँ ख़ुशी और गम का
बँटवारा भी न था
या ये कह लो तुम्हारे साये में
हमें इनका फरक भी पता न था
लौट जाना चाहती हूँ
उस बचपन में जहाँ तुम थे
न कि तुम्हारी यादें !!!