दर्द के दरबार में फ़रियाद किया करती हूँ,
रात तन्हाई की आबाद किया करती हूँ,
जब न मिले चाहत का कोई बहाना,
तब पलकें बन्द करके आपको याद किया करती हूँ ।
Passionate about poetry, nature and human psychology. A wanderer, firm believer of creativity, the best quality a person can acquire in his lifetime. This is the blog of Pratibha Verma.
Monday, July 17, 2006
Thursday, July 13, 2006
आईने की तलाश,..
खुद को समझाना चाहती हूँ,
हर दर्द खुद से बतलाना चाहती हूँ
आज गर कोई पास होता मेरे,
तो ऐसा करने की चाहत ना होती
हर कागज पर इक आईना,
तलाशने की हसरत न होती ।
हर दर्द खुद से बतलाना चाहती हूँ
आज गर कोई पास होता मेरे,
तो ऐसा करने की चाहत ना होती
हर कागज पर इक आईना,
तलाशने की हसरत न होती ।
Wednesday, July 12, 2006
जुबानी मेरी,..
खामोशियों से पूछो कहानी मेरी,
तुम्हे पता चल जिन्दगानी मेरी,
मुझे खामोशी ने समझा,
और तन्हाईयों ने जाना है,
यही बतला देगें जुबानी मेरी ।
तुम्हे पता चल जिन्दगानी मेरी,
मुझे खामोशी ने समझा,
और तन्हाईयों ने जाना है,
यही बतला देगें जुबानी मेरी ।
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