Tuesday, July 22, 2014

रात बीत गई चाँद निहारते निहारते …

रात बीत गई चाँद निहारते निहारते …
पर तुम्हारी कोई खबर न आई

तुम्हारे इंतज़ार में
रात कब गुजर गई
पता ही न चला

तुम्हे समझ कर
करती रही चाँद
से बाते

और तुम भी तो...

कुछ चाँद की ही तरह हो
बस मेरी सुनते रहते हो
खुद कभी कुछ नहीं कहते

तम्हारी ख़ामोशी
कुछ तो कहती है
या शायद मैं
समझ नहीं पा रही

बेबसी फासलों की
कह लो
या वक्त की
पाबंदी

जो तुम्हे समझकर भी
तुमसे अन्जान हूँ

जब वक़्त मिले तब बताना
शायद हम भी तुम्हें  फुरसत  से
सुनना चाहतें हैं।।


7 comments:

  1. रात बीत गई चाँद निहारते निहारते … बहुत भावपूर्ण कविता है ।

    ReplyDelete
  2. बहुत बढ़िया

    ReplyDelete
  3. behad umda rachna

    ReplyDelete
  4. behad umda rachna

    ReplyDelete
  5. इंतज़ार दुनिया का सबसे खूबसूरत काम है, बेहतरीन ।

    ReplyDelete
  6. सुन्दर रचना!

    ReplyDelete