रात बीत गई चाँद निहारते निहारते …
पर तुम्हारी कोई खबर न आई
तुम्हारे इंतज़ार में
रात कब गुजर गई
पता ही न चला
तुम्हे समझ कर
करती रही चाँद
से बाते
और तुम भी तो...
कुछ चाँद की ही तरह हो
बस मेरी सुनते रहते हो
खुद कभी कुछ नहीं कहते
तम्हारी ख़ामोशी
कुछ तो कहती है
या शायद मैं
समझ नहीं पा रही
बेबसी फासलों की
कह लो
या वक्त की
पाबंदी
जो तुम्हे समझकर भी
तुमसे अन्जान हूँ
जब वक़्त मिले तब बताना
शायद हम भी तुम्हें फुरसत से
सुनना चाहतें हैं।।
पर तुम्हारी कोई खबर न आई
तुम्हारे इंतज़ार में
रात कब गुजर गई
पता ही न चला
तुम्हे समझ कर
करती रही चाँद
से बाते
और तुम भी तो...
कुछ चाँद की ही तरह हो
बस मेरी सुनते रहते हो
खुद कभी कुछ नहीं कहते
तम्हारी ख़ामोशी
कुछ तो कहती है
या शायद मैं
समझ नहीं पा रही
बेबसी फासलों की
कह लो
या वक्त की
पाबंदी
जो तुम्हे समझकर भी
तुमसे अन्जान हूँ
जब वक़्त मिले तब बताना
शायद हम भी तुम्हें फुरसत से
सुनना चाहतें हैं।।
रात बीत गई चाँद निहारते निहारते … बहुत भावपूर्ण कविता है ।
ReplyDeleteबहुत बढ़िया
ReplyDeletebehad umda rachna
ReplyDeletebehad umda rachna
ReplyDeleteइंतज़ार दुनिया का सबसे खूबसूरत काम है, बेहतरीन ।
ReplyDeleteसुन्दर रचना!
ReplyDelete.
ReplyDeleteसुंदर भाव !
सुंदर काव्य !