काश कही से आ जाते तुम
बारिश की बूँद की तरह,
मन को दे जाते तसल्ली
तपती रेत पर ठंडी बौछार की तरह।
लो अब तो बारिश भी आ गई
पर तुम्हारा कोई पता नहीं,
अनजानी इस राह में
मेरा कोई हमसफ़र नहीं।
कैसे बुलाऊँ तुमको
खुद से मिलने,
जब मुझे खुद
तुम्हारा पता नहीं।।
Kya baat hai...
ReplyDeleteबहुत खूब प्रतिभा जी।
ReplyDeleteसादर
वाह ....बहुत खूब
ReplyDeleteसुंदर रचना
ReplyDeleteकल 20/जुलाई /2014 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
ReplyDeleteधन्यवाद !
सुन्दर भाव .....
ReplyDeleteबहुत खूब
ReplyDeleteअच्छी रचना.
ReplyDeleteये बारिश की बूँदें भी आती हैं पर उनके बिना .. तरसाती हैं फिर जैसे अगन ...
ReplyDeleteसुंदर भावाभिव्यक्ति…
ReplyDeleteबहुत सुन्दर और भावप्रणव प्रस्तुति।
ReplyDeleteसुंदर प्रस्तुति.
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