उफ़ ये रात
काली सी डरावनी सी...
रोज़ आ जाती है
कुछ नए सपने लिए
कुछ पुराने दर्द लिए।
अपने अंदर
कुछ सिसकियाँ
और कुछ लम्हे छुपाये।
क्यों आती है
ये रात
उन लम्हों के साथ।
मुझे कुरेदती है
कुछ नए सपने
भी दिखाती है।
डर लगता है
इन रातों में...
तुम्हारा ही साया
दिखता है
इन अंधेरों में।
डरती हूँ आँख बन्द करने से
कि कहीं फिर एक सपना
टूटने को सवँर न जाए।।
काली सी डरावनी सी...
रोज़ आ जाती है
कुछ नए सपने लिए
कुछ पुराने दर्द लिए।
अपने अंदर
कुछ सिसकियाँ
और कुछ लम्हे छुपाये।
क्यों आती है
ये रात
उन लम्हों के साथ।
मुझे कुरेदती है
कुछ नए सपने
भी दिखाती है।
डर लगता है
इन रातों में...
तुम्हारा ही साया
दिखता है
इन अंधेरों में।
डरती हूँ आँख बन्द करने से
कि कहीं फिर एक सपना
टूटने को सवँर न जाए।।
सुंदर अभिव्यक्ति ।
ReplyDeleteआपकी यह उत्कृष्ट प्रस्तुति कल शुक्रवार (25.07.2014) को "भाई-भाई का भाईचारा " (चर्चा अंक-1685)" पर लिंक की गयी है, कृपया पधारें और अपने विचारों से अवगत करायें, चर्चा मंच पर आपका स्वागत है, धन्यबाद।
ReplyDeleteThank you so much...
Deleteबहुत खूब प्रतिभा जी
ReplyDeleteसादर
क्यों आती है
ReplyDeleteये रात
उन लम्हों के साथ।
मुझे कुरेदती है
कुछ नए सपने
भी दिखाती है।
....सपने जीना सीखा कर एक नयी राह दिखा देती है
...बहुत बढ़िया
सपने सच हो जायें आपके।
ReplyDeleteसुन्दर रचना।
खुबसूरत अभिवयक्ति.....
ReplyDeleteबहुत सुन्दर !
ReplyDeleteअच्छे दिन आयेंगे !
सुंदर रचना...
ReplyDeleteवाह, कहीं एक सपना टूटने को संवर न जाए।
ReplyDeleteशिशकियां को सिसकियाँ कर लेंगी तो रचना और सुंदर लगेगी।
Thank u so much Asha ji...:)
Deleteसुन्दर प्रस्तुति
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