Tuesday, August 19, 2014

ये रेत की दीवारें…



जहाँ रिसता है पानी
हर बारिश की बूँद के साथ

जहाँ पलते  हैं सपने
हर नींद के साथ

जहाँ होता है उजाला
हर रोज नई रौशनी के साथ

जहाँ आज भी जानवर
बच्चों की तरह प्यारे हैं

जहाँ राशन की लम्बी
कतार तो है

पर दुकान पर
राशन नहीं है

जहाँ भूख तो है
पर रोटी कम पड़ जाती है

ये रेत की दीवारे कब
ढह जाएँ ये इन्हें भी नहीं पता।। 








10 comments:

  1. आपकी लिखी रचना बुधवार 20 अगस्त 2014 को लिंक की जाएगी........
    http://nayi-purani-halchal.blogspot.in आप भी आइएगा ....धन्यवाद!

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  2. भावपूर्ण रचना |

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  3. बेहतरीन अभिव्‍यक्ति

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  4. उम्दा रचना

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  5. बहुत खूब

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  6. बहुत खूब ! मंगलकामनाएं

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  7. "
    मर्मस्पर्शी "

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