Tuesday, June 17, 2014

एक नई पहचान …

हाँ खुश हूँ
मैं बहुत खुश…

एक नई  पहचान  जो मिली है मुझे
एक नई  सोंच के साथ ...

क्या हुआ गर
तुम वफ़ा  न कर सके ...

क्या हुआ गर
तुम साथ न निभा सके ...

शायद तुम्हारी भी
कोई मज़बूरी रही हो ...

या शायद तुम्हारी बेवफाई ने
मुझे इतना मजबूत बना दिया...

कि  कोई झोका
हिला नहीं सकता ...

अब तो इरादे भी मज़बूत हो चुके हैं
और हम भी ...

तभी तो जीना चाहती हूँ
इस नई  पहचान के साथ।।

11 comments:

  1. बहुत सुन्दर ज़ज्बा...प्रभावी रचना..

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  2. जियो........जी भर के जियो !!

    अनु

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  3. क्या बात है। जबरदस्त रचना।

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  4. बहुत सुन्दर प्रस्तुति

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  5. अब तो इरादे भी मज़बूत हो चुके हैं
    और हम भी ...

    तभी तो जीना चाहती हूँ
    इस नई पहचान के साथ।।

    बहुत सुन्दर प्रस्तुति

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  6. इरादे नेक और मजबूत हो तो अलग पहचान बनने में देर नहीं लगती
    बहुत बढ़िया ..

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  7. मंगलकामनाएं प्रतिभा !!

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  8. या शायद तुम्हारी बेवफाई ने
    मुझे इतना मजबूत बना दिया...
    तभी तो जीना चाहती हूँ
    इस नई पहचान के साथ।।
    सुन्दर जज्बातों के साथ अच्छी अभिव्यक्ति प्रतिभाजी, क्यों भूलें कि किसी की बेवफाई दूजे के नए जीवन का आगाज होती है

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  9. जब किसी से मिला धोखा का प्रारब्ध होता है
    तो उसके बाद जो जीवन हम जीते है वो अपने आप खूबसूरत हो जाता है

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  10. जिंदगी कई पहचान दे जाती है हमें
    पर जिंदगी को पहचान पाना थोड़ा मुश्किल होता है

    बहुत खूब , प्रभावी अभिव्यक्ति प्रतिभा जी !

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  11. Majboot tirade hee le jayenge aage

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