खुद को समझाना चाहती हूँ,
हर दर्द खुद से बतलाना चाहती हूँ
आज गर कोई पास होता मेरे,
तो ऐसा करने की चाहत ना होती
हर कागज पर इक आईना,
तलाशने की हसरत न होती ।
आज गर कोई पास होता मेरे,
तो ऐसा करने की चाहत ना होती
हर कागज पर इक आईना,
तलाशने की हसरत न होती ।
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 05-06-2014 को चर्चा मंच पर चर्चा - 1634 में दिया गया है
ReplyDeleteआभार
bahut sundar bhavpurn abhivyakti .
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ReplyDeleteकल 06/जून /2014 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
धन्यवाद !
बढ़िया....
ReplyDeleteकागज़ पर आईने की तलाश- बहुत भावात्मक प्रयोग !
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