कुछ हसरतें रह गई बाकी
कुछ अरमान रह गए अधूरे
कुछ सपने तुम्हारे थे
कुछ सपने हमारे थे,
संजोया था हमने
मिलके जिनको,
फिर कहाँ से ये तूफां आया
जिसे हम रोक न सके,
हमारे अरमानों की कश्ती
बह गई उस तूफां में,
न दोष तुम्हारा था
न हमारा,
कमबख्त तूफां ही
गलत वक्त पर आया।।
कुछ अरमान रह गए अधूरे
कुछ सपने तुम्हारे थे
कुछ सपने हमारे थे,
संजोया था हमने
मिलके जिनको,
फिर कहाँ से ये तूफां आया
जिसे हम रोक न सके,
हमारे अरमानों की कश्ती
बह गई उस तूफां में,
न दोष तुम्हारा था
न हमारा,
कमबख्त तूफां ही
गलत वक्त पर आया।।
आप की ये खूबसूरत रचना...
ReplyDeleteदिनांक 03/07/2014 की नयी पुरानी हलचल पर लिंक की गयी है...
आप भी इस हलचल में अवश्य आना...
सादर...
कुलदीप ठाकुर...
अनुपम भाव संयोजन ....
ReplyDeleteबहुत अच्छी लगी यह रचना |
ReplyDeleteबहुत सुन्दर भावपूर्ण रचना...
ReplyDelete..............कमबख्त तूफां ही
ReplyDeleteगलत वक्त पर आया।।
अति सुन्दर!
सुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteअंतस को छूती बहुत सुन्दर रचना...
ReplyDeleteबहुत ही खुबसूरत अभिव्यक्ति
ReplyDeleteअत्यंत खूबसूरत रचना
ReplyDeleteअत्यंत खूबसूरत रचना
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