Friday, February 13, 2015

कैसा दिखता होगा चाँद वहाँ से...





सोंचती हूँ कैसा दिखता  होगा
चाँद वहाँ  से
शायद जैसा यहाँ  से दिखता  है
पर परदेस में
शायद वो भी कुछ
अनजाना सा हो
कुछ यादों का साक्षी
कुछ बातों का राजदार
जब भी देखोगे अपनी
बंद खिड़की से
कुछ यादें सहला जाएँगी
कुछ नए सपने बुन जाएंगे
और कभी कभी दिल को
किसी के पास होने का
एहसास तड़पा जाएगा। 

20 comments:

  1. बहुत सुंदर एवं भावपूर्ण.

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  2. बहुत सुंदर एवं भावपूर्ण.

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  3. गहरे अहसास लिये सुंदर अभिव्यक्ति। प्रेमदिवस से पूर्व प्रासंगिक।

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  4. सार्थक प्रस्तुति।
    --
    आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शनिवार (14-02-2015) को "आ गया ऋतुराज" (चर्चा अंक-1889) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    पाश्चात्य प्रेमदिवस की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ...
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  5. चाँद तो हर जगह एक सा दिखता है, अधूरा-अधूरा सा।

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  6. गहरी संवेदना । सुन्दर सृजन।

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  7. मन की वेदना को पिरोती अच्छी भावपूर्ण अभिव्यक्ति

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  8. कैसा दिखता होगा चांद वहां से। वैसा ही जैसा दिखता है यहां से।

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  9. आपने घनानंद की याद दिला दी
    अति उत्तम लिखा है लेख

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  10. बहुत ख़ूब, सुंदर रचना...महाशिव रात्रि की शुभकामनाएँ!!

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  11. सुन्दर सृजन...

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  12. अच्छी कविता।

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  13. आज 18/ फरवरी /2015 को आपकी पोस्ट का लिंक है http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
    धन्यवाद!

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  14. बहुत भावपूर्ण नज़्म …

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  15. प्रेम की भावना अनुसार चाँद बदलता है अपना रूप ...

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  16. Anonymous2:13 PM

    प्रशंसनीय

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