सोंचती हूँ कैसा दिखता होगा
चाँद वहाँ से
शायद जैसा यहाँ से दिखता है
पर परदेस में
शायद वो भी कुछ
अनजाना सा हो
कुछ यादों का साक्षी
कुछ बातों का राजदार
जब भी देखोगे अपनी
बंद खिड़की से
कुछ यादें सहला जाएँगी
कुछ नए सपने बुन जाएंगे
और कभी कभी दिल को
किसी के पास होने का
एहसास तड़पा जाएगा।
बहुत सुंदर एवं भावपूर्ण.
ReplyDeleteबहुत सुंदर एवं भावपूर्ण.
ReplyDeleteगहरे अहसास लिये सुंदर अभिव्यक्ति। प्रेमदिवस से पूर्व प्रासंगिक।
ReplyDeleteसार्थक प्रस्तुति।
ReplyDelete--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शनिवार (14-02-2015) को "आ गया ऋतुराज" (चर्चा अंक-1889) पर भी होगी।
--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
पाश्चात्य प्रेमदिवस की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ...
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
Thank u so much Sir!!!
Deleteचाँद तो हर जगह एक सा दिखता है, अधूरा-अधूरा सा।
ReplyDeleteगहरी संवेदना । सुन्दर सृजन।
ReplyDeleteमन की वेदना को पिरोती अच्छी भावपूर्ण अभिव्यक्ति
ReplyDeleteकैसा दिखता होगा चांद वहां से। वैसा ही जैसा दिखता है यहां से।
ReplyDeleteआपने घनानंद की याद दिला दी
ReplyDeleteअति उत्तम लिखा है लेख
बहुत ख़ूब, सुंदर रचना...महाशिव रात्रि की शुभकामनाएँ!!
ReplyDeleteसुन्दर सृजन...
ReplyDeleteअच्छी कविता।
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर और मनमोहक रचना ...
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग पर आप सभी लोगो का हार्दिक स्वागत है.
आज 18/ फरवरी /2015 को आपकी पोस्ट का लिंक है http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
ReplyDeleteधन्यवाद!
Thank you so much Yashwant ji!!!
Deleteबहुत भावपूर्ण नज़्म …
ReplyDeleteसुंदर रचना
ReplyDeleteप्रेम की भावना अनुसार चाँद बदलता है अपना रूप ...
ReplyDeleteप्रशंसनीय
ReplyDelete