कहाँ गई वो मर्यादा
कहाँ गया वो पुरुषार्थ
जहाँ बंधते थे रिश्तों के धागे
और उनको निभाने की कसमें
वो रेशम की डोरी
वो हंसी वो ठिठोली
जहाँ थी एक मर्यादा
जहाँ था एक विश्वास
न कुचलता था कोई किसी की मर्यादा
न ही करता था खुद को शर्मशार
पर आज शायद इंशानियत खो सी गई है कहीं
क्यूंकि आज फिर किसी ने किया है इंसानियत को शर्मशार !!
कहाँ गया वो पुरुषार्थ
जहाँ बंधते थे रिश्तों के धागे
और उनको निभाने की कसमें
वो रेशम की डोरी
वो हंसी वो ठिठोली
जहाँ थी एक मर्यादा
जहाँ था एक विश्वास
न कुचलता था कोई किसी की मर्यादा
न ही करता था खुद को शर्मशार
पर आज शायद इंशानियत खो सी गई है कहीं
क्यूंकि आज फिर किसी ने किया है इंसानियत को शर्मशार !!
नमस्कार आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (25-08-2013) के चर्चा मंच -1348 पर लिंक की गई है कृपया पधारें. सूचनार्थ
ReplyDeleteआदमी की नीयत का खोट - और क्या !
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति.. आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी पोस्ट हिंदी ब्लॉग समूह में सामिल की गयी और आप की इस प्रविष्टि की चर्चा कल - सोमवार- 26/08/2013 को
ReplyDeleteहिंदी ब्लॉग समूह चर्चा-अंकः6 पर लिंक की गयी है , ताकि अधिक से अधिक लोग आपकी रचना पढ़ सकें . कृपया आप भी पधारें, सादर .... Darshan jangra
बहुत सुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteबहुत अच्छी रचना
ReplyDeletelatest post आभार !
latest post देश किधर जा रहा है ?
sunder rachna
ReplyDeleteसामयिक उथल-पुथल पर
ReplyDeleteसार्थक अभिव्यक्ति
न कुचलता था कोई किसी की मर्यादा
ReplyDeleteन ही करता था खुद को शर्मशार
पर आज शायद इंसानियत खो सी गई है कहीं
क्यूंकि आज फिर किसी ने किया है इंसानियत को शर्मशार !!
प्रतिभा जी होश जगाती मानव को दानव न बनाने को चेताती ......प्यारी सामयिक रचना ....सुन्दर
भ्रमर ५
सचमुच इंसानियत खो गयी है कहीं, हमें ही ढूढ़ना है इसे... प्रतिस्थापित करना है पुनः!
ReplyDeleteसच में आज इंसान ने इंसानियत को शर्मशार कर दिया है..बहुत दुखद स्तिथि...श्री कृष्ण जन्माष्टमी की शुभकामनायें!
ReplyDeleterachana bahut hi prabhavshali lagi pratibha ji .....samaj khokhala ho chuka hai kya kar sakate hain ?
ReplyDeleteन विश्वास न मर्यादा ..
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