ख्वाबों की दुनिया हर कोई बनाता है
जिसमें उम्मीदों की पेंगें भरता है
सारे पहलुओ को हम दरकिनार कर
उड़ना चाहतें हैं खुले आसमाँ में
शायद ये उम्मीद नाम ही है
टूटने का....
कोई न कोई खड़ा रहता है
हमारे पर कुतरने को
और शायद मन ही मन
मुस्कुराता है ओ शक्स
अपनी झूठी जीत पर
पर शायद ये नहीं जानता ओ
कि कुदरत सब देख रही है
उस इंसान की चली हुई
हर चाल का जवाब मिलेगा
और उस वक़्त कोई आँसू
पोंछने वाला भी पास न होगा
संभल जाओ ऐ एहसानमंदों
लगा लो लगाम अपनी आदतों पे
वरना वक़्त की मार से
उबर न पाओगे
कुछ कहना भी चाहोगे
तो तड़प के रह जाओगे!!!
दिनांक 04/04/2017 को...
ReplyDeleteआप की रचना का लिंक होगा...
पांच लिंकों का आनंदhttps://www.halchalwith5links.blogspot.com पर...
आप भी इस चर्चा में सादर आमंत्रित हैं...
आप की प्रतीक्षा रहेगी...
गहरी सोच से उपजी रचना ...
ReplyDeleteबहुत ही मार्मिक वर्णन जीवन के सारभौमिक सत्य का।
ReplyDeleteसुन्दर।
ReplyDeleteसुन्दर शब्द रचना
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
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