हाँ मुझे फ़क्र है
खुद के आस्तित्व पे
गुरूर है...
खुद के वज़ूद पे
घमंड है उस जननी पे
जिसने इस दुनिया में
लाने का हौंसला दिखाया
और अपने आँचल की
छाँव में रखकर...
इस ज़माने से बचाया
शुक्रिया अदा करती हूँ
उस जननी को
जिसने आंधी बनकर
मेरे आस्तित्व को बचाया
हाँ ख़ुश हूँ मैं...
कि हे जननी तूने मुझे
नारीत्व का एहसास कराया !!
खुद के आस्तित्व पे
गुरूर है...
खुद के वज़ूद पे
घमंड है उस जननी पे
जिसने इस दुनिया में
लाने का हौंसला दिखाया
और अपने आँचल की
छाँव में रखकर...
इस ज़माने से बचाया
शुक्रिया अदा करती हूँ
उस जननी को
जिसने आंधी बनकर
मेरे आस्तित्व को बचाया
हाँ ख़ुश हूँ मैं...
कि हे जननी तूने मुझे
नारीत्व का एहसास कराया !!
ऐसा कमाल का लिखा है आपने कि पढ़ते समय एक बार भी ले बाधित नहीं हुआ और भाव तो सीधे मन तक पहुंचे !!
ReplyDeleteबहुत भावपूर्ण कविता है।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर......
ReplyDeleteसुन्दर रचना
ReplyDeleteNaari ke man ki bat bahut hi sundar tarike se vyakt ki hai aapne.
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