Monday, June 10, 2013

"बनना चाहती हूँ एक नदी"



By: Pratibha 


बनना चाहती हूँ एक नदी
जो हमेंशा बहती ही रहती है
बस अपनी ही धुन में ...
पर सबको देती है
वरदान अपना
मीठे जल से करती निर्मल सबको
बस बहती रहती है अपनी ही धुन में
बिना रुके बिना थके
बिना किसी आलस
कितनी सुन्दर कितनी निर्मल
दिखती है ये
अन्दर से भी है  बड़ी ही निर्मल और पावन
हजारों दुखों और सुखों को
बड़ी ही सहजता से संजोया है
अपने अन्दर
साक्षी है तमाम कसमों
और रस्मों  की
पर कभी न कहती किसी से
बस अपने अन्दर दबाये है
हजारों एहसासों को
फिर भी न कोई गुस्सा न कोई रोस
दिखाती है
बस बहती रहती है  अपनी ही धुन में!!

17 comments:

  1. सुंदर कल्पना ....नदी
    जो हमेंशा बहती ही रहती है

    ReplyDelete
  2. बहुत सुंदर
    अच्छा लगा
    उम्दा अभिव्यक्ति...

    ReplyDelete
  3. बहुत,सुंदर प्रस्तुति,,,प्रतिभा जी,,,

    recent post : मैनें अपने कल को देखा,

    ReplyDelete
  4. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
    आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि की चर्चा कल मंगलवार (11-06-2013) के "चलता जब मैं थक जाता हुँ" (चर्चा मंच-अंकः1272) पर भी होगी!
    सादर...!
    शायद बहन राजेश कुमारी जी व्यस्त होंगी इसलिए मंगलवार की चर्चा मैंने ही लगाई है।
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

    ReplyDelete
  5. आपने लिखा....हमने पढ़ा
    और लोग भी पढ़ें;
    इसलिए कल 12/06/2013 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
    आप भी देख लीजिएगा एक नज़र ....
    धन्यवाद!

    ReplyDelete
  6. ......यानि सच्ची उन्मुक्तता. सुन्दर पंक्तियाँ.

    ReplyDelete
  7. Anonymous9:56 AM

    दुआ चंदन
    बस रहे पावन
    जहाँ भी रहे !

    ReplyDelete
  8. बहुत सुन्दर भाव ,बहुत सुन्दर प्रस्तुति प्रतिभा जी !
    latest post: प्रेम- पहेली
    LATEST POST जन्म ,मृत्यु और मोक्ष !

    ReplyDelete
  9. बहुत सुन्दर.बहुत बढ़िया लिखा है .शुभकामनायें आपको .

    ReplyDelete
  10. हजारों एहसासों को
    फिर भी न कोई गुस्सा न कोई रोस
    दिखाती है
    बस बहती रहती है अपनी ही धुन में!!
    ....परोपकार के लिए बहने वाली नदी बनना कौन नहीं चाहेगा ....बहुत सुन्दर परिकल्पना ...

    ReplyDelete
  11. बहुत ही सुन्दर और सार्थक प्रस्तुती,आभार.

    ReplyDelete
  12. Anonymous3:37 PM

    सब कुछ समाहित करके निश्चल बहते रहना - अच्छी सीख

    ReplyDelete
  13. जीवन-सरिता के लिये बड़ी मनोहर कल्पना सँजोई है-
    नदी के समान मानव भी सबके हित का उद्देश्य ले कर चले तो सारी विषमताएं समाप्त हो जाए !

    ReplyDelete
  14. नदी हो जाना ... महासागर में विलीन हो जाना ... यही तो जीवन है ...
    सुन्दर रचना है ...

    ReplyDelete

  15. बस अपने अन्दर दबाये है
    हजारों एहसासों को
    फिर भी न कोई गुस्सा न कोई रोस
    दिखाती है
    बस बहती रहती है अपनी ही धुन में!!------

    वाकई नदी बहती है,सहती है और खुद भी जीती है
    सुंदर अनुभूति,बेहतरीन रचना
    बधाई

    आग्रह है- पापा ---------

    ReplyDelete
  16. सम्हलिए ! ये नदी है । अपने पे आ जाए तो खैर नहीं । '' Handle with care '' ...
    !!!बहुत ही अच्छी कविता ।

    ReplyDelete
  17. खुबसूरत अल्फाजों में पिरोये जज़्बात....शानदार |

    ReplyDelete