By: Pratibha |
बनना चाहती हूँ एक नदी
जो हमेंशा बहती ही रहती है
बस अपनी ही धुन में ...
पर सबको देती है
वरदान अपना
मीठे जल से करती निर्मल सबको
बस बहती रहती है अपनी ही धुन में
बिना रुके बिना थके
बिना किसी आलस
कितनी सुन्दर कितनी निर्मल
दिखती है ये
अन्दर से भी है बड़ी ही निर्मल और पावन
हजारों दुखों और सुखों को
बड़ी ही सहजता से संजोया है
अपने अन्दर
साक्षी है तमाम कसमों
और रस्मों की
पर कभी न कहती किसी से
बस अपने अन्दर दबाये है
हजारों एहसासों को
फिर भी न कोई गुस्सा न कोई रोस
दिखाती है
बस बहती रहती है अपनी ही धुन में!!
सुंदर कल्पना ....नदी
ReplyDeleteजो हमेंशा बहती ही रहती है
बहुत सुंदर
ReplyDeleteअच्छा लगा
उम्दा अभिव्यक्ति...
बहुत,सुंदर प्रस्तुति,,,प्रतिभा जी,,,
ReplyDeleterecent post : मैनें अपने कल को देखा,
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
ReplyDeleteआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि की चर्चा कल मंगलवार (11-06-2013) के "चलता जब मैं थक जाता हुँ" (चर्चा मंच-अंकः1272) पर भी होगी!
सादर...!
शायद बहन राजेश कुमारी जी व्यस्त होंगी इसलिए मंगलवार की चर्चा मैंने ही लगाई है।
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आपने लिखा....हमने पढ़ा
ReplyDeleteऔर लोग भी पढ़ें;
इसलिए कल 12/06/2013 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
आप भी देख लीजिएगा एक नज़र ....
धन्यवाद!
......यानि सच्ची उन्मुक्तता. सुन्दर पंक्तियाँ.
ReplyDeleteदुआ चंदन
ReplyDeleteबस रहे पावन
जहाँ भी रहे !
बहुत सुन्दर भाव ,बहुत सुन्दर प्रस्तुति प्रतिभा जी !
ReplyDeletelatest post: प्रेम- पहेली
LATEST POST जन्म ,मृत्यु और मोक्ष !
बहुत सुन्दर.बहुत बढ़िया लिखा है .शुभकामनायें आपको .
ReplyDeleteहजारों एहसासों को
ReplyDeleteफिर भी न कोई गुस्सा न कोई रोस
दिखाती है
बस बहती रहती है अपनी ही धुन में!!
....परोपकार के लिए बहने वाली नदी बनना कौन नहीं चाहेगा ....बहुत सुन्दर परिकल्पना ...
बहुत ही सुन्दर और सार्थक प्रस्तुती,आभार.
ReplyDeleteसब कुछ समाहित करके निश्चल बहते रहना - अच्छी सीख
ReplyDeleteजीवन-सरिता के लिये बड़ी मनोहर कल्पना सँजोई है-
ReplyDeleteनदी के समान मानव भी सबके हित का उद्देश्य ले कर चले तो सारी विषमताएं समाप्त हो जाए !
नदी हो जाना ... महासागर में विलीन हो जाना ... यही तो जीवन है ...
ReplyDeleteसुन्दर रचना है ...
ReplyDeleteबस अपने अन्दर दबाये है
हजारों एहसासों को
फिर भी न कोई गुस्सा न कोई रोस
दिखाती है
बस बहती रहती है अपनी ही धुन में!!------
वाकई नदी बहती है,सहती है और खुद भी जीती है
सुंदर अनुभूति,बेहतरीन रचना
बधाई
आग्रह है- पापा ---------
सम्हलिए ! ये नदी है । अपने पे आ जाए तो खैर नहीं । '' Handle with care '' ...
ReplyDelete!!!बहुत ही अच्छी कविता ।
खुबसूरत अल्फाजों में पिरोये जज़्बात....शानदार |
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