कभी खुद पे कभी हालात पे रोना आया
बात निकली तो हर बात पे रोना आया
सोंचती हूँ तो समझ नहीं आता
कि तुम्हें किस बात पे गुस्सा आया
ख़फ़ा थे तो कह के देखते
शायद तुम्हारी नाराजगी की वज़ह
हम समझ पाते!
मूक रहकर…
हम तुम्हे कैसे समझ पाते
चलो छोड़ो जाने भी दो
क्या सिकवा करें तुमसे
हमारी शिकायत की वज़ह
सही भी तो न होगी
तुम्हे वक़्त ही कहाँ मिला
हमें समझने का !!
बहुत खूबसूरत पंक्तियाँ हैं��
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर
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