Thursday, July 16, 2015

साज़िशें वक़्त की

कैसी हैं ये साज़िशें वक़्त की
जहाँ हर वक़्त तुम याद आते हो
बचपन की वो बातें
आँख बंद करते ही
याद दिलाते हो
फिर से जीना चाहती हूँ
वो लम्हे…
वो बेफिक्री की ज़िन्दगी
जहाँ तुम थे मेरा
हाँथ थामे
जहाँ  ख़ुशी और गम का
बँटवारा भी न था
या ये कह लो तुम्हारे साये में
हमें  इनका फरक भी पता न था
लौट जाना चाहती हूँ
उस बचपन में जहाँ तुम थे
न कि तुम्हारी यादें !!!





7 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा आज शुक्रवार (17-07-2015) को
    "एक पोस्ट का विश्लेशण और कुछ नियमित लिंक" {चर्चा अंक - 2039}
    (चर्चा अंक- 2039) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक

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  2. BEBASI AUR TANHAI ME HAM AKSAR AISI HI GAM BHARI BAATE KIYA KARTE HAI
    SANJO K YAADE RAKHNA, HI TO JINDGI KA KAAM HAI ISILIYE HM YE KAAM BARBAR KARTE HAI.

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  3. बहुत सुन्दर रचना

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  4. Beautiful .. Pratibha :)

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  5. क़ाश ये संभव हो।

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