आई थी एक नन्ही परी इस जहाँ में
सपने हज़ार पलकों में लिए,
माँ बाबा की प्यारी
भैया की दुलारी थी वो,
पूरे घर कि रौनक थी वो
सबकी जान थी वो,
अभी बस चलना ही सीखा था
नादाँ सी आवाज़ में माँ-बाबा कहना सीखा था
पर अचानक ये क्या हुआ
घर का ही कोई अपना,
सबकुछ गन्दा कर गया
रिस्तों को चूर - चूर कर गया,
क्या-क्या सोंचा था माँ - बाबा ने अपनी परी के लिए
और क्या से क्या हो गया,
कहाँ गए ओ संस्कार
जिन्हें हम अपनी धरोहर कहतें हैं,
क्या सच में वो किसी
संदूक में बंद पड़े हैं,
या हम सिर्फ उनके नाम का
रोना रोतें हैं !!
संदूक में बंद पड़ी हर चीज पुरानी हो जाती है या तो धुप दिखाईए या फेंक दीजिये
ReplyDeleteनए को जगह बनाना है की नहीं :) ??
सार्थक प्रस्तुति
ReplyDeletebadhiya ...
ReplyDeletebadhiya ...
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