Wednesday, January 02, 2013

चिंतनीय विषय ...

आज के  हिंदुस्तान टाइम्स के सर्वे की एक  रिपोर्ट के अनुसार अठत्तर प्रतिशत महिलाएं दिल्ली में  बीते वर्ष सुरछित नहीं थीं ...अब चिंता का विषय ये है कि आने वाला साल इस राजधानी को क्या एक सुरक्षित भाविष्य दे पायेगा ? क्या कोई औरत, बेटी, बहन अपने आपको सुरक्षित महसूस कर पायेगी यहाँ पर ...कहने को लोग कहतें हैं की एक औरत ही औरत का दर्द समझती है ...पर यहाँ तो हमारी सरकार भी एक महिला ही चला रही हैं।।

अब सबसे ज्यादा चिंतित तो वो माता - पिता हैं जिनकी बच्चियां  बड़ी हो रही हैं ...आजकल तो शायद उनके गले के नीचे निवाला भी नहीं उतरता होगा ...हर रात बस यही चिंता सताती होगी कि क्या उनकी औलाद सुरक्षित है ?

हर रात माँ मेरे पास आती है 
मेरे सिरहाने आके
मेरे सर पर अपना 
हाँथ फिराती है ...

और फिर अनकहे मन से 
दबे पाँव वापस 
चली जाती है ...

उसे लगता है अब 
सो चुकी है उसकी लाड़ली 
यह सोचकर वह उस रात 
तो शुक्र मानती है ...

वहाँ बाबा भी बंद आँख 
करवटें बदलते रहतें हैं 
बस कल की  चिंता में।।



5 comments:

  1. माता-पिता को तो चिंता होनी ही है जब ऐसे कुकर्म सरेआम हो रहे हो।

    आपकी रचना एक गहरे भाव व दर्द से सराबोर है।
    आप बहुत अच्छा लिखते हो प्रतिभा जी ...बधाई स्वीकार करें। :)

    यहाँ पर आपका इंतजार रहेगा शहरे-हवस

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  2. बहुत - बहुत शुक्रिया ....नव वर्ष पर हार्दिक शुभकामनाएं

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  3. सुन्दर प्रस्तुति
    सुंदर , सार्थक , श्रेष्ठ सृजन करते रहें …

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  4. बहुत सहज सी रचना....
    मन को कचोट गयी...
    अनु

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  5. घाव है... दर्द है...
    पर दवा ?

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