Saturday, February 02, 2019

शायद बस तुम्हे ही नहीं पता ...

शायद बस तुम्हे ही नहीं पता
पर ये खबर पूरे शहर में आम हो चुकी है।
हम तुम्हारे इश्क़ में
सरेआम हो चुके हैं।
बस अब इंतज़ार यही है
कि  कब पलट के देखोगे मुझे
उस नज़र से !
सज़दे में तेरे हम
सुबह और शाम बैठें हैं।
तुम्हारा इंतज़ार कुछ इस कदर करते हैं
अपने कमरे की हर एक परछाईं को
हम तुमसे जोड़ बैठें हैं ।
हाँ जब तुम सामने आते हो
तो नज़र नहीं उठती
साँस थम सी जाती है
और हलक से आवाज़ नहीं निकलती।
जब तुम  मेरे करीब से गुजरते हो
सब महक सा जाता है
और मेरे आस पास सिर्फ सन्नाटा हो जाता है।
बस अब इंतज़ार उस पल का है
जब तुम इन झुकी नज़रों का
मतलब समझ पाओगे।
उस दिन शायद हम
इश्क -ए - इज़हार कर पाएंगे।।

11 comments:

  1. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" रविवार 03 फरवरी 2019 को साझा की गई है......... http://halchalwith5links.blogspot.in/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. वाह बहुत सुन्दर ¡¡
    चांद और चकोर की अपूर्ण प्रेम कथा
    सदियों पुरानी है
    सारा संसार इसे जानता है बस
    एक चांद को ही नही मालुम है।
    वाह ¡

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  3. वाह बहुत सुन्दर ¡¡
    चांद और चकोर की अपूर्ण प्रेम कथा
    सदियों पुरानी है
    सारा संसार इसे जानता है बस
    एक चांद को ही नही मालुम है।
    वाह ¡

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  4. बहुत सुंदर.... लाजबाब

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  5. बहुत सुंदर.... लाजबाब

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  6. बेहद हदयस्पर्शी..... लाजवाब आदरणीया

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  7. भावपूर्ण पोस्ट

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  9. सुंदर कविता

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