जब तुमसे कुछ कहने के लिए
तुम्हारे पास आना चाहा
तुम्हारे पास वक़्त ही न था ..
जब तुम्हारी पनाहों में आकर
कुछ वक़्त गुजारना चाहा
तुम्हारे पास वक़्त ही न था ..
हम वक़्त के ऐसे मोहताज़ क्या हुए
कि अब वक़्त आया तो
न कुछ कहने को है
न ही कुछ सुनने को !!!
शायद इसी को विडम्बना कहते हैं !
ReplyDeleteसमय का फेर होता है ... एक दिन जरूर दिन पलटते हैं ...
ReplyDeleteआपकी इस प्रस्तुति का लिंक 05-95-2015 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2333 में दिया जाएगा
ReplyDeleteधन्यवाद
ऐसा ही होता है
ReplyDeleteबहुत सही और भावपूर्ण
ReplyDeleteकटु सच्चाई
ReplyDeleteKya ye alfaj man me yun h aaye honge
ReplyDeleteareey koi to wajah hogi jisne dimag me piroye honge
agar ye creativity hai dimag ki to acchi bat hai
Nh to Chand ke pas ke taare aap bhi nh count kar paye honge