बहुत रो लिए तुम्हारी बेवफाई पे
बहुत लड़ लिए खुद से,
हज़ारों कदम बढ़ाये हमने
तुम्हारी तरफ आने को।
पर तुम मुर्दे बने
वहीं खड़े रहे,
न आई तुममें जान
कि बढ़ कर मेरा हाँथ थामते।
खुद को कोसा मैंने
कि क्यों कर रही हूँ इतनी कोशिश,
फिर समझा कुछ तो रिश्ता बचा था अभी।
हाँ अब मैं भी तोड़ना चाहती हूँ,
इस रिश्ते को
और अब लौट जाने की बारी हमारी है।
न बढ़ाउंगी अब कोई कदम
न ही होंगी अब तुम्हारी यादें
बस अब पीछे हटने की बारी हमारी है।।
रिश्तों को पीछे छोड़ना आसान नहीं....कदम लौटेंगे मगर मन वहीं छूट जाएगा...
ReplyDeleteअनु
प्रेम में क्या आगे जाना या पीछे लौटना ... अगर वो नहीं कदम बढाता तो शायद उसे प्रेम ही नहीं था ... भाव पूर्ण अभिव्यक्ति ...
ReplyDeleteसुंदर भाव ।
ReplyDeleteप्रेम में ऐसा किसने कहाँ
ReplyDeleteहमेशा मिलन ही है
जुदाई कहाँ .....
nicely expressed .....
ReplyDeleteबहुत मार्मिक वियोग । सच तो ये है कोई लौट नहीं पाता है । बहुत से लोग लौटना चाहते हैं पर लौट नहीं सके । एक बार चाहत बन जाने के बाद ह्रदय से उसे मरते दम तक नहीं भूल सकते । कोसिस करना धर्म है लेकिन जब हार जाए तब मेरा ये कमेन्ट याद आएगा ।
ReplyDelete