Sunday, December 26, 2010

हम ऐसे क्यों हार जातें हैं......

हम ज़िन्दगी से ऐसे क्यों हार जाते हैं,
एक ही पल में सारा जहाँ झोड़ जातें हैं|
क्या चाहत है हमारी ज़िन्दगी से ,
हम उस पल वो भी भूल जातें हैं|
लोग कहतें हैं ये तो खेल है कुदरत का ,
ये तो किस्मत में लिखा है उस खुदा ने|
अगर कहीं खुदा है इस जहाँ में,
तो वो इतना बड़ा दर्द हमें कैसे दे पाता है||

7 comments:

  1. यही तो उसकी कारीगरी है हिम्मत बनाये रखिये

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  2. सच सोचने वाली बात है ....

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    यहाँ आपका स्वागत है

    गुननाम

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  3. अभी सुख है ,अभी दुःख है ,अभी क्या था ,अभी क्या है ,

    जहां दुनिया बदलती है उसी का नाम दुनिया है .

    बड़े अरमान से वायदों ने दिल में घर बसाया था ,

    वो दिन जब याद आते हैं कलेजा मुंह को आता है ,

    मोहब्बत करके भी देखा मगर उसमें भी धोखा है

    यही फलसफा है रवायत है रोज़ नामचा है ,दैनिकी है ,रूटीन है ज़िन्दगी का .हार कैसी ,जीत कैसी ?

    "हम ऐसे क्यों हार जातें हैं......
    हम ज़िन्दगी से ऐसे क्यों हार जाते हैं,
    एक ही पल में सारा जहाँ झोड़ जातें हैं|"............छोड़ जाते हैं .....

    गम न कर ज़िन्दगी पड़ी है अभी ,

    कोई ताज़ा हवा चली है अभी ......

    दिल में एक लहर सी उठी है नै .....

    यही हैं ज़िन्दगी के रंग

    कोई आ रहा है ,कोई जा रहा है ,

    ये ज़िन्दगी के मेले .दुनिया में कम न होंगे ,

    अफ़सोस हम न होंगें ....

    बढ़िया अभिव्यक्ति ....जीत कैसी हार कैसी ..पकड़ा क्या जो छोड़ेंगे ...नदिया के संग बहना

    है ,

    ....

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  4. बहुत सही कहा प्रतिभा जी।


    सादर

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  5. कल 13/अगस्त/2014 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
    धन्यवाद !

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  6. अगर कहीं खुदा है इस जहाँ में,
    तो वो इतना बड़ा दर्द हमें कैसे दे पाता है||

    u r right

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