Tuesday, December 21, 2010

किनारे कि तलाश में...

हम कश्ती में बैठे थे किनारे कि तलाश में ,
पर लहरों में कोई तो खलल थी ,
कोई तो तूफां था समंदर में|
हम समझना चाहते थे कि समन्दर,
इतना बेचैन क्योँ है आज |
हम कुछ भी समझ पाते ,
किनारा तलाश कर पाते |
उससे पहले ही हम अपनी कश्ती डूबा बैठे||

8 comments:

  1. Abhi khivayya kashti me maujud hai,
    abhi Dil me ummid baki hai;
    kashti, dubne nahi denge,
    jab tak samundar me hum jinda hai.

    ReplyDelete
  2. बेहतरीन !


    सादर

    ReplyDelete
  3. बहुत सुन्दर .रूपकात्मक परिधान कविता का आकर्षक है मोहक है .

    ReplyDelete
  4. शुक्रिया आपकी टिप्पणी का .समझ न आने वाली घटनाएं आकस्मिक ही घटती हैं .गेमचेंजर भी .

    ReplyDelete
  5. बहुत ही सार्थक,बेहतरीन अभिव्यक्ति।

    ReplyDelete
  6. आज 21/फरवरी /2015 को आपकी पोस्ट का लिंक है http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
    धन्यवाद!

    ReplyDelete